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साधन स्रोत : १५ (स) विदेशियों के कार्य एवं वृतान्त :
१०वीं शताब्दी से पूर्व की स्थिति पर प्रकाश डालने वाले यूनानी, चीनी और अरब यात्रियों के वृतान्त हैं, जिनसे पश्चिमी भारत में जैन धर्म की भूमिका की स्वल्प जानकारी मिलती है । मध्यकाल में मुस्लिम व फारसी इतिहासकारों की कृतियों में भी जैन मत का यत्किचित सन्दर्भ है। उत्तर मध्यकाल में व उसके बाद कई विदेशी, विशेषतः यूरोपीय लेखकों ने भारत के धर्म, कला, साहित्य, स्थापत्य, समाज, रीतिरिवाज आदि के बारे में लिखा है, जिससे भी राजस्थान में जैन धर्म की ऐतिहासिकता पर कुछ प्रकाश पड़ता है । कतिपय विदेशी लेखकों ने तो जैन धर्म का अच्छा अध्ययन करके अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भी दिया है। जर्मनी के हर्मन जेकोबी, विटरनिट्ज, पिशेल, ग्लाशनेप, शुब्रिग एवं एल्सडोर्फ विशेष रूप से उल्लेखनीय है । फ्रांसीसी विद्वान् गुर्नोट और ओलिविट लेकोम्बे के नाम भी महत्त्वपूर्ण हैं । अंग्रेजी लेखकों में श्रीमती स्टीवेंसन ने भी जैन धर्म का अध्ययन करके महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
इटली के डॉ० एल० पी० कैसी तोरी राजस्थान और उसके साहित्य के प्रेमी थे। इनकी शोध का विवरण एशियाटिक सोसाइटी ने प्रकाशित किया। राजस्थान के साहित्य व इतिहास के सम्बन्ध में कुछ अंग्रेज अधिकारयों ने भी योगदान दिया जिनमें अलेक्जेण्डर किलोंक, फर्स, कनिंघम, कार्लाइल एवं गैरिक आदि मुख्य हैं । फर्स ने आबू ने कई शिलालेखों की नकले की और देलवाड़ा के दोनों जैन मंदिरों की कारीगरी का वृतान्त लिखा। भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष, कनिंघम ने राजपूताना के कई शिलालेखों एवं शिल्प आदि पर प्रकाश डाला है । अशोक के काल का बैराठ का लेख, महाराणा कुंभा सम्बन्धी कई तथ्यों तथा कई पुराने सिक्कों को प्रकाश में लाने का श्रेय इनको ही है। कार्लाइल ने भी कई शिलालेखों व सिक्कों का पता लगाया। गैरिक, चित्तौड़ के कीर्ति स्तम्भ को बची हुई दो शिलाओं तथा रावल समरसिंह के समय के १२७३ ई० के चित्तौड़ के शिलालेख का चित्र सर्वप्रथम प्रसिद्धि में लाये । नार्मन, ब्राउन, बिन्सेन्ट स्मिथ, लेपेल ग्रिफिन, मेकडोनेल, जी० एफ० मूर, जे० फर्ग्युसन, डा० गोएट्ज, हॉवेल आदि ने भी अपनी कृतियों में भारतीय जैन धर्म के पहलुओं को उजागर किया है। जर्मनी के डा० बुहलर ने भी इस प्रदेश के ऐतिहासिक शोध कार्य में अपना योगदान दिया । जर्मन विद्वान कीलहॉर्न, अंग्रेज विद्वान पीटर पीसन, डाँ० वेब, डॉ० फ्लीट एवं सेसिल बेडाल नामक विद्वानों ने भी राजस्थान के इतिहास की कई बातों को प्रकाश में लाने का कार्य किया, जिससे मध्यकालीन जैन धर्म की स्थिति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। १. जैसेस्कू पृ० १। २. राभा, अप्रैल १९५० । ३. मुहस्मृग, पृ० ६३०.६४० ।
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