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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३६५
४९. भट्टारक शुभचन्द्र : ये भट्टारक विजयकीर्ति के शिष्य थे । ये १५१६ ई० में भट्टारक हुए । इनका सम्बन्ध बलात्कार गण की ईडर शाखा से था । इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान, पंजाब, गुजरात व उत्तरप्रदेश रहा । वे अपने समय के प्रसिद्ध भट्टारक, साहित्यकार, धर्मप्रचारक एवं विद्वान् थे । ये " षड्भाषाकवि चक्रवर्ती'" कहलाते थे तथा महाग्रन्थों के पारगामी विद्वान् थे । १५५९ ई० में इन्होंने " पांडव पुराण" की रचना की । इस समय तक इन्होंने "चंद्रप्रभ चरित्र", "श्रेणिक चरित्र", "जीवंधर चरित्र" २, "चंदना कथा", "अष्टाह्निका कथा", "सद्वृत्तिशालिनी", "तीन चौबीसी पूजा", " सिद्धचक्र पूजा", "सरस्वती पूजा", "चिंतामणि पूजा", "कर्मदहन पूजा", "पार्श्वनाथ काव्यपंजिका", "पल्यव्रतोद्यापन", " चरित्र शुद्धि विधान", "संशयवदन विदारण", 'अपशब्द खण्डन", "तत्त्व निर्णय", "स्वरूप सम्बोधन वृत्ति", " आध्यात्म तरंगिणी ", " चिन्तामणि प्राकृत व्याकरण", "अंगप्रशस्ति", आदि की रचना कर ली थी । इसके पश्चात् इन्होंने और भी कृतियाँ रचीं । उक्त सभी रचनाएँ “पांडवपुराण" में उल्लिखित हैं | राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों में इनकी अब तक उपलब्ध कृतियाँ निम्न प्रकार हैं- "ऋषिमंडल पूजा", "अनन्तव्रत पूजा", " अम्बिका कल्प", " अष्टाह्निका व्रत कथा ", " अष्टाह्निका पूजा", "अढाई द्वीप पूजा", "करकंडु चरित्र", "कर्मदहन पूजा", "कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका", "गणधर - वलय पूजा", "गरावली पूजा", "चतुर्विंशति पूजा", "चंदना चरित्र", "चंदनषष्टी व्रत पूजा", " चंद्रप्रभ चरित्र", "चरित्र शुद्धि विधान", "चितामणि पार्श्वनाथ पूजा", "जीवंघर पूजा", "तेरह द्वीप पूजा", "तीन चौबीसी पूजा", "तीस चौबीस पूजा", "त्रिलोक पूजा", " त्रपन क्रियागति", "नंदीश्वर पंक्ति पूजा", "पंचकल्याणक पूजा", "पंचगणमाल पूजा", " पंचपरमेष्ठि पूजा", "पत्यव्रतोद्यापन", "पांडवपुराण", " पार्श्वनाथ काव्य पंजिका", " प्राकृत लक्षण टीका", "पुष्पांजलि व्रत पूजा", "प्रद्युम्न चरित्र", " बारह सौ चौंतीस व्रत पूजा", "लघु सिद्धचक्र पूजा", "वृहदसिद्ध पूजा", " श्रेणिके चरित्र', ' 'समयसार टीका", "सहस्त्रगुणीत पूजा", "सुभाषितार्णव" आदि ।
५०. पं० खेता - ये वैद्य विद्या में पारंगत राजस्थानी विद्वान् थे । " सम्यक्त्व कौमुदी” इनकी प्रसिद्ध रचना है | राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में इसकी अनेक प्रतियाँ १. जैसाऔइ, पृ० ३८३ ।
२. वही, पृ० ५३३ |
३. राजेशाग्रसू, ४८ एवं २४७ ॥ ४. जैग्रप्रस, क्र० ६२ ।
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५. जैसाऔइ, पृ० ५३३ ॥
६. कासलीवाल, प्रशस्ति संग्रह, पृ० ७ । ७. कासलीवाल राजैसा, पृ० ११२ ।
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