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३६४ : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधर्म
४०. माणिक्य सुन्दरगणी : ये भी तपागच्छ से संबंधित थे । इन्होंने १४४४ ई० में देव कुलपाटक में " भवभावना" बालावबोध की रचना की । "
४१. जयसागरोपाध्याय :- ये खरतरगच्छ से सम्बन्धित थे । इन्होंने १४१६ ई० में जैसलमेर में " शान्तिनाथ जिनालय प्रशस्ति" रची । २
४२. माणिक्य सुन्दर सूरि : ये अंचलगच्छ के मुनि थे । इन्होंने १४०६ ई० में देवकुलपाटक में "श्रीधर चरित्र" महाकाव्य की रचना की । १४२७ ई० में सांचौर में " गुणवर्म चरित्र" लिखा । ४३. सोमकु जर : ये भी खरतरगच्छ के मुनि थे । १४४० ई० में जैसलमेर में इन्होंने "संभव जिनालय प्रशस्ति" निबद्ध की ।४
४४. जिन हर्षगणी : ये तपागच्छ से सम्बन्धित थे । इन्होंने १५वीं शताब्दी में चित्तौड़ में "रत्नशेखर कथा" की रचना की ।"
४५. जिनहंस सूरि ( १४६७ ई० - १५२५ ई० ) :- ये खरतरगच्छीय जिनसमुद्रसूरि के शिष्य थे। इनकी प्रमुख रचना १५१५ ई० में बीकानेर में रचित " आचारांग - सूत्र दीपिका " है ।
४६. युगप्रधान जिनचन्द्र सूरि :-ये खरतरगच्छीय जिनमाणिक्य सूरि के शिष्य थे । ये बडलो निवासी व रोहड गोत्र के थे । इन्हें अकबर द्वारा युगप्रधान की उपाधि - दी गई थी। इनकी मुख्य कृति १५६० ई० में रचित "पौषध विधि प्रकरण टीका" है । ७
४७. महोपाध्याय पुण्यसागर :- ये खरतरगच्छीय जिनहंस सूरि के शिष्य और १६वीं शताब्दी के प्रतिष्ठित विद्वान् थे । इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—- जैसलमेर में १५८८ ई० में रचित "जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रटीका", और १५८३ ई० में बीकानेर में रचित "प्रश्नोत्तरकषष्टिशत काव्य टीका" ।
४८. दयारत्न : ये आद्यपक्षीय शाखा से सम्बन्धित मुनि थे । इन्होंने १५६९ ई० में "न्याय रत्नावली" रची ।"
१. राजैसा, पृ० ७४-८२ ।
२. नाजैलेस, क्र० २११२, २१५४ ।
३. राजैसा, पृ० ७२-८२ ।
४. वही ।
५. वही ।
६. वही, पृ० ६७ ।
७. वही ।
८. जैसलमेर भण्डार की ग्रन्थ सूची, पृ० ४६ । ९. राजैसा, पृ० ७३ ।
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