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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३६३ ई० तक इनका भट्टारक जीवन रहा। १५०३ ई० में इन्होंने "तत्वज्ञानतरंगिणी' की रचना समाप्त की। ये प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, गुजराती एवं राजस्थानी के परम विद्वान् थे । नाथूराम प्रेमी ने इनके "तत्त्वज्ञानतरंगिणी", "सिद्धान्तसार भाष्य", "परमार्थोपदेश", "आदिश्वर फाग" "भक्तामरोद्यापन", "सरस्वती पूजा" आदि ग्रन्थों का उल्लेख किया है। पं० परमानन्द ने उक्त रचनाओं के अतिरिक्त-"सरस्वती स्तवन" "आत्मसम्बोधन" आदि का भी उल्लेख किया है । डॉ० कासलीवाल द्वारा ग्रन्थ भण्डारों की खोजबीन करने पर निम्न रचनाओं का भी पता लगा है। 'ऋषिमण्डल पूजा", "पूजाष्टक टीका'', ''पंचकल्याणकोद्यापन पूजा", "भक्तामर पूजा"५ "श्रुति पूजा"६, “सरस्वती पूजा", "सरस्वती स्तुति", "शास्त्रमण्डल पूजा', "दशलक्षणव्रतोद्यापन पूजा"१° ।
३७. पं० मेघावी :-ये भट्टारक जिनचन्द्र के शिष्य, अग्रवाल जातीय व संस्कृत के धुरन्धर विद्वान् थे। इन्होंने १४८६ ई० में "धर्मसंग्रह श्रावकाचार" की रचना नागौर में सम्पन्न की।१।।
३८. पद्मविरगणी:-ये खरतरगच्छ के मुनि थे। इन्होंने १४९६ ई० में जैसलमेर में "ऋषि मण्डल प्रकरण टीका", १४८९ ई० में जैसलमेर में "गणधर सार्द्ध -- शतक लघु वृत्ति" की रचना की ।१२
३९. चारित्र सुन्दरगणी :-ये तपागच्छीय मनि थे । इन्होंने १४४२ ई० में चित्तौड़ में “दानप्रदीप" की रचना की। 3
१. जैसाऔइ, पृ० ३८२ । २. जैनप्रस, भूमिका । ३. राजेशाग्र सू, ४, पृ० ४६३ । ४. चही, पृ० ६५० । ५. वही, पृ० ५२३ । ६. वही, पृ० ५३७ । ७. वही, पृ० ५१५ । ८. वही, पृ० ६५७ । ९. वही, पृ० ५३० । २०. वही, पृ० ८३० । ११. राजैसा, पृ० ११३ । १२. वही, पृ० ७४-८२ । १३. बही।
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