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________________ .३६२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म २८. चरित्र वर्द्धन ( १४१३ ई०-१४६३ ई० ) :-ये प्रतिभाशाली व बहुश्रुत विद्वान् लघु खरतरगच्छीय तथा कल्याणराज के शिष्य थे। इनका उपनाम नरवेश सरस्वती था। इनकी प्रमुख रचनाएँ-"रघुवंश टीका", "कुमारसम्भव टीका" १४३५ ई०, “शिशुपालवध टीका", "नैषध काव्य टीका'' १४५४ ई०, "मेघदूत टीका", "राघवपांडवीय टीका", "सिन्दूरप्रकर टीका" १४४८ ई०, "भावारिवारण" एवं "कल्याण मन्दिर स्तोत्र टीका' हैं।' २९. कमल संयमोपाध्याय :-ये जिनदत्त सूरि के शिष्य थे । इन्होंने १४८७ ई० में "उत्तराध्ययन" पर संस्कृत टीका लिखी। ३०. वर्द्धमान सूरि :- ये रुद्रपल्लीय शाखा के आचार्य थे। इन्होंने १४११ ई० में "आचार दिनकर" की रचना की। ३१. श्री तिलक :-ये भी रुद्रपल्लीय शाखा के मुनि थे। इन्होंने १५वीं शताब्दी में "गौतम पृच्छा' टीका लिखी। ३२. लक्ष्मीचन्द्र :-ये भी रुद्रपल्लीय शाखा से सम्बद्ध थे। इन्होंने १४०८ ई० में "संदेशरासक टीका' लिखी। ३३. जिनसागर सूरि :-ये पिप्पलक शाखा के जैनाचार्य थे। इनकी १५वीं शताब्दी में रचित "कपूर प्रकर टीका", "सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्ति" उपलब्ध ३४. धर्मचन्द्र :-ये भी पिप्पलक शाखा के मुनि थे। इनकी मुख्य रचनाएँ "सिंदूर प्रकर टीका" १४५६ ई०, 'स्वात्मसंबोध", "कर्पूर मंजरी सट्टक टीका" हैं । ३५. हर्षकुजरोपाध्याय :-ये पिप्पलक शाखा से संबंधित थे। इन्होंने १४७३ ई० में "सुमति चरित्र" लिखा। ___ ३६. भट्टारक ज्ञानभूषण :-इस नाम के ४ भट्टारक हुये हैं। ये विमलेन्द्र कीर्ति के शिष्य थे। बाद में इन्होंने भट्टारक भुवनकीर्ति को भी अपना गुरु स्वीकार कर लिया था। ये अपने समय के प्रसिद्ध संत एवं विद्वान थे। १४७८ ई० से १५०० १. राजसा, ६६। २. वही, पृ० ७२ । ३. वही। ४. वही। ५. वही। .. ६. वही। ७. वही, पृ० ७३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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