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जैन साहित्य एवं साहित्यकार: ३६१
रहा । इन्होंने सहस्त्रों स्तुति स्तोत्रों की रचना की । इनकी मुख्य कृतियाँ निम्न हैं" विज्ञप्ति त्रिवेणी" १४२७ ई०, " पृथ्वीचन्द्र चरित्र" १४४६ ई०, "जैसलमेर शांतिनाथ जिनालय प्रशस्ति" १४३६ ई०, " संदेह दोहावली टीका", "गुरुपारतन्त्र्य स्तोत्र टीका", "भावारिवारण स्तोत्र टीका " एवं अनेकों स्तोत्र | " विज्ञप्ति त्रिवेणी" एक ऐतिहासिक विज्ञप्ति पत्र है, जिसमें कई तीर्थों का दुर्लभ विवरण अंकित है ।"
२५. कीर्तिरत्न सूरि (१३९२ ई०-१४६८ ई० ) :- ये खरतरगच्छीय जिनवर्द्धन सूरि के शिष्य थे । इनकी विशिष्ट रचना "नेमिनाथ महाकाव्य" है 12
२६. भट्टारक सकलकीर्ति :- ये अनहिलपुर पट्टन निवासी हुम्मड़ जातीय थे । नैणवा में इन्होंने पद्मनन्दी का शिष्यत्व ग्रहण किया था। इनका प्राकृत एवं संस्कृत दोनों पर समान अधिकार था । राजस्थान के विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों में अभी तक इनकी निम्न संस्कृत रचनाएँ उपलब्ध हुई हैं- "मूलाचार प्रदीप", "प्रश्नोत्तरोपासकाचार" "आदिपुराण", "उत्तरपुराण", "शांतिनाथ चरित", "वर्धमान चरित्र", "मल्लिनाथ चरित्र ", " यशोधर चरित्र", "धन्यकुमार चरित्र", "सुकुमाल चरित्र" " सुदर्शन चरित्र", " सद्भाषितावली", "पार्श्वनाथ चरित्र", 'व्रतकथाकोष", "नेमिनाथ चरित्र", "" कर्म विपाक", "तत्त्वार्थं सार दीपक", "सिद्धान्तसार दीपक", १४२५ ई०, " आगमसार”, “परमात्मराज स्तोत्र", "सारचतुर्विंशतिका", "श्रीपाल चरित्र", "जम्बूस्वामी चरित्र", " द्वादशानुप्रेक्षा", " अष्टाह्निका पूजा", "सोलहकारण पूजा", "गणधरवलय पूजा", "भावनापंचविंशति व्रत कथा", आदि । 3
२७. वाडव : ये श्वेताम्बर अंचलगच्छीय उपासक श्रावक थे व विराट नगर के 'निवासी थे । ये संस्कृत व जैन साहित्य के सफल टीकाकार व १५वीं शताब्दी के प्रौढ़ विद्वान थे । इन्होंने अनेकों ग्रन्थों पर टीकाएँ लिखीं, जिनमें से बहुत सी प्राप्त नहीं हैं। इनकी एकमात्र अपूर्ण कृति " वृत्तरत्नाकर अवचूरि" मुनि विनय सागर के व्यक्तिगत संग्रह में है । इसकी प्रशस्ति के अनुसार वाडव ने निम्नलिखित ग्रन्थों पर अवचूरियाँ लिखी — “कुमारसंभव”, "कल्याणमंदिर स्तोत्र", "मेघदूत", "रघुवंश", "मात्र", "किरातार्जुनीय", "भक्तामर स्तोत्र", "पार्श्वनाथ स्तोत्र", "जीरापल्ली पार्श्वनाथ स्तोत्र", "त्रिपुरा स्तोत्र", "वृत्तरत्नाकर ", " वाग्भटालंकार", "विदग्ध मुखमंडन", " योग शास्त्र", " वीतराग स्तोत्र" आदि । इन कृतियों की खोज की आवश्यकता है ।*
१. राजैसा, पृ० ६७ ॥
२. जैसासइ, पृ० ४७१ ।
३. राजेसा, १०३ - १०४ । ४. वही, पृ० ६६ ।
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