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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३५९ नाचार्य पद प्राप्त किया। १३२६ ई० में बाड़मेर में रचित "चैत्यवंदनकुलक वृत्ति" इनकी मुख्य कृति है । इनके द्वारा विरचित कई स्तोत्र भी प्राप्त हैं।'
१२. अभयदेव सूरि :-ये रुद्रपल्लीय शाखा से सम्बन्धित थे । इन्होंने १२२१ ई० में "जयन्त विजय" महाकाव्य की रचना की।
१३. सोमतिलक सरि :-ये भी रुद्रपल्लीय शाखा से सम्बन्धित थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ--''शीलोपदेश माला टीका" १३३५ ई०, “षड्दर्शन समुच्चय टीका" १३३५ ई०, 'कन्यानयन तीर्थ कल्प" आदि हैं।
१४. संघतिलक सूरि :--रुद्रपल्लीय शाखा से सम्बन्धित इन आचार्य की प्रमुख रचनाएँ--"सम्यक्त्व सप्तति टीका" १३६५ ई०, 'कुमारपाल प्रबन्ध" १३९७ ई० व "ख्यिान टीका" आदि हैं।
१५. दिवाकराचार्य :-ये रुद्र पल्लीय शाखा के मुनि थे। इनकी १४वीं शताब्दी में विरचित "दानोपदेशमाला" उपलब्ध होती है।"
१६. देवेन्द्र सूरि :-ये भी रुद्रपल्लीय शाखा से सम्बद्ध थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ-"दानोपदेशमाला टीका" १३६१ ई०, "प्रश्नोत्तर रत्नमाला टीका" १३७२ ई०, "नवपद अभिनव प्रकरण टीका" १३९५ ई० आदि हैं।
१७. चन्द्र तिलक :-इन्होंने १२५५ ई० में "अभयकुमार चरित्र" की रचना बाड़मेर में प्रारम्भ की।
१८. विवेकसमुद्र :-इन्होंने १२७७ ई० में "नरवर्मचरित" एवं "पुण्य सागर कथा" की रचना जैसलमेर में की । ... १९. नयचन्द्र सूरि :-इन्होंने संभवतः १३वीं शताब्दी के अन्त में "हम्मीर महाकाव्य' की रचना राजस्थान में की। यह कथात्मक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
१. राजैसा, पु० ६५; सिसी क्र०१०। २. राजैसा, पु०७२। ३. वही। ४. वही। ५. वही। ६. वही। ७. जैसासइ, पृ० ४११ । ८. वही, पृ० ४१५ । ९. नाहटा, राजस्थानी साहित्य की गौरवपूर्ण परम्परा, पृ० ३५।।
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