SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म था। इन्होंने “समयसार" पर भी टीका लिखी, जिसकी एकमात्र प्रति भट्टारकीय दिगम्बर जैन मन्दिर, अजमेर में है। ७. जिनेश्वर रि द्वितीय :-ये खरतरगच्छ के थे। इन्होंने १२६० ई० में जालौर में "श्रावक धर्मविधि स्वोपज्ञ टीका" की रचना की। ८. सर्वदेवसरि :-ये भी खरतरगच्छ के मुनि थे। इन्होंने १२३० ई० में जैसलमेर में "स्वप्न सप्तति टोका" की रचना की । ९. पूर्णभद्रगणी :--ये खरतरगच्छ से सम्बन्धित थे। इन्होंने १२२८ ई० में जैसलमेर में “धन्यशालिभद्र चरित्र" की रचना की ।" "अतिमुक्त कथा चरित्र" और "कृतपुण्य चरित" इन्हीं की अन्य रचनाएँ हैं। १०. जिनप्रभसूरि ( १२६९ ई०-१३३६ ई० )--ये लघु खरतरगच्छ शाखा से सम्बन्धित थे और जिनसिंह सूरि के शिष्य थे । ये महम्मद तुगलक के प्रतिबोधक धर्मगुरु तथा महाप्रभावी एवं चमत्कारी आचार्य रहे। इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं "श्रेणिक चरित्र" (द्वयाश्रयकाव्य, १२९९ ई०), "कल्पसूत्र सन्देह विषौषधि टीका" ( १३०७ ई० ), "साधु प्रतिक्रमण सूत्र टीका' ( १३०७ ई० ), “षडावश्यक टीका", "अनुयोग चतुष्टय व्याख्या", "प्रव्रज्याभिधान टीका", "विधि मार्ग प्रथा" ( १३०६ ई०), 'कातन्त्रविभ्रम टोका” ( १२९५ ई० ), "अनेकार्थ संग्रह टीका", "शेष संग्रह टोका", "विदग्ध मुख मंडन टोका" ( १३११ ई०), "गायत्री विवरण" "मूरिमंत्र वृहत्कल्प विवरण", "रहस्य कल्पद्रुम" और "विविध तीर्थ कल्प"६ आदि ग्रन्थ । स्तोत्र साहित्य में इनके लगभग ८० स्तोत्र प्राप्त हैं । “विविध तीर्थ कल्प" तीर्थों के इतिहास के बारे में अभूतपूर्व, मौलिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण रचना है । ११. जिनकुशल सरि ( १२८० ई०-१३३२ ई० ):-श्वेताम्बर समाज में तीसरे दादाजी के नाम से प्रसिद्ध, खरतरगच्छीय जिनचन्द्र सूरि के शिष्य, छाजहड़ गोत्रीय, जिनकुशल १२८० ई० में सिवाना में उत्पन्न हये और १३१८ ई० में नागौर में वाच १, राजैसा, पृ० १०२ । २. राजशाग्रसू, ५, पृ० २३ । ३. राजैसा, पृ० ७४.८२ । ४. राभा, ३, अंक २। ५. जैसलमेर भण्डार के ग्रन्थों की सूची, पृ० ३ एवं ३४ । ६. राजैसा. पृ० ६५, सिजैसी, क्र. १०। ७. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy