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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३५७ धनासार टोका", "अमरकोष टीका", "क्रियाकलाप टीका"', “काव्यालंकार टीका", "जिनसहस्त्र नाम", "जिनपंजरकाव्य" ( १२२८ ई०), "त्रिषष्ठि स्मृति शास्त्र"४ (१२३५ ई०), "रत्नत्रयविधान" (१२२५ ई०), "सागर धर्मामृत टीकासह" ( १२३९ ई०), "अनगार धर्मामृत", "भव्य कुमुद चन्द्रिका टीका सह" ( १२४३ ई०)। इनके अतिरिक्त इन्होंने "सिद्धचक्रपूजा", "दीक्षापटल", "प्रतिष्ठा सार", "जिनकल्याणमाला", "पंचकल्याणकमाला", "स्वास्तिमंगल विधान", 'अंकुरारोपण विधि" की भी रचना की । आशाधर रचित "त्रिभंगी सुबोधिनी" टीका को २ प्रतियां जयपुर के दिगम्बर जैन मन्दिर लश्कर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत हैं। इन्होंने "शांतिनाथ पुराण" की भी रचना की। इनके द्वारा रचित "अमरकोष टीका",' तथा वाग्भट के कार्य पर लिखी गई “अष्टांगहृदय धोतिनी टीका' दोनों अनुपलब्ध है ।१०
५. वागभट्ट :-वागभट्ट नाम के अनेक विद्वान हुए हैं। ये अहिछत्रपुर के रहने वाले प्राग्वाट छाहद के पुत्र थे।११ ये १३वीं शताब्दी के विद्वान थे। इनके द्वारा रचित "छन्दोनुशासन' एवं ''काव्यानुशासन'' कृतियाँ ज्ञात हुई हैं। "नेमिनिर्वाण" नामक रचना भी इनके द्वारा लिखित बताई जाती है। इन्होंने अनेकों सूत्रों की व्याख्या के रूप में "काव्यमाला" की भी रचना की ।१२।
६. भट्टारक प्रभाचन्द्र :-ये धर्मचन्द्र के प्रशिष्य और रत्नकीर्ति के शिष्य थे। ये तुगलक वंश के समकालीन थे। अजमेर इनकी गादी तथा राजस्थान, दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश कार्यक्षेत्र था। इन्होंने “समाधि तन्त्र" तथा अमृतचन्द्र के “आत्मानुशासन" पर संस्कृत में टीकाएँ लिखीं, जो लोकप्रिय रहीं। इनका काल सम्भवतः १३वीं शताब्दी
१. जैसाऔइ, पृ० १३५ ।। २. वही, पृ० १३६ । ३. वही, पृ० १३५ । ४. वही, पृ० १३६ । ५. वही, पृ० १३४-१३६ । ६. वही, पृ० १३४-३५ । ७. राजशाग्रसू, ५, पृ० २० । ८. वही, पृ० २५ । ९, जैसाऔइ, पृ० १३५ । १०. वही, पृ० १३६ । ११. वही, पृ० ४८३ । १२. वही, पृ० ४८६ ।
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