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________________ ३५६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म १. लक्ष्मोतिलकोपाध्याय (१२१८ ई०-१२८३ ई०) :-ये खरतरगच्छीय जिनेश्वर सूरि द्वितीय के शिष्य थे । १२३१ ई० में दीक्षित होकर, १२५५ ई० में वाचनाचार्य एवं १२६० ई० में जालौर में उपाध्याय पद प्राप्त किया। इन्होंने अभयतिलक रचित कई ग्रन्थों का संशोधन किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ “प्रत्येक बुद्धचरित्र" महाकाव्य' ( १२५४ ई० ) और १२६० ई० में जालौर में रचित "श्रावक धर्म वृहद् वृत्ति" हैं। २. अभयतिलकोपाध्याय :-ये खरतरगच्छीय जिनेश्वर सूरि द्वितीय के शिष्य थे। इनका समय १३वीं शताब्दी रहा । १२३४ ई० में जालौर में दीक्षा व १२६२ ई० में उपाध्याय हुए। ये न्याय और काव्यशास्त्र के प्रौढ़ विद्वान् थे। इनकी प्रमुख रचनाएँहेमचन्द्रीय संस्कृत "द्वयाश्रय काव्य" पर टीका (१२५५ ई० )३ "पंचप्रस्थान", "न्याय तर्क व्याख्या", "पानीयवाद स्थल" आदि हैं।४ ३. आचार्य जयसेन :-ये आचार्य वीरसेन के प्रशिष्य थे। इन्होंने भी "समयसार", "प्रवचनसार", "पंचास्तिकाय", पर संस्कृत टीकाएँ लिखीं। शास्त्र भण्डारों में इन टीकाओं की एकाधिक प्रतियां मिलती हैं। रचनाओं में समयोल्लेख नहीं है । विभिन्न प्रमाणों के आधार पर इनका समय १३वीं शताब्दी का पूर्वाद्ध माना जाता है । ४. बाशाधर :-ये मूलतः मांडलगढ़ ( मेवाड़ ) के निवासी थे। १२९२ ई० में शहाबुद्दीन गोरी के आक्रमण के समय ये धारानगरी में जाकर बस गये । वहाँ से भी कुछ समय पश्चात् ये नालछा चले गये, जहां इन्होंने अनेक ग्रन्थ व उनकी टीकाएं लिखीं। आवाधर संस्कृत के महापंडित तथा न्याय, व्याकरण, काव्य, अलंकार, शब्दकोष, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र और वैद्यक आदि विषयों पर पूर्ण अधिकार रखते थे। इनकी विभिन्न रचनाओं का उल्लेख मिलता है, जिसमें से ११ उपलब्ध है-"प्रमेयरत्नाकर", "भरतेश्वराभ्युदय"", "ज्ञानदीपिका", "राजमतीविप्रलंभ", "अध्यात्मरहस्य", "मूलाराधना टीका", 'इष्टोपदेश टीका", "भूपाल चतुर्विशति टीका", "आरा १. जैसलमेर भंडार की ग्रन्थ सूची, पृ० २३ । २. राजैसा, पृ० ६४ । ३. जैसासइ, पृ० ४१० । ४. राजैसा, प ६५ । ५. कासलीवाल, राजसा, पृ० ९९ । ६. वही, पृ० ९९-१०१ । ७. वही, पृ० १००। ८. जैसाऔइ, पृ० १३४-१३५ । ९. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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