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________________ जन साहित्य एवं साहित्यकार : ३५५ कवि थे | ये अजमेरा गोत्रीय खण्डेलवाल एवं चातसू निवासी थे । इनका रचनाकाल १५२१ ई० से १५२८ ई० माना गया है । इन्होंने १५२१ ई० में " पारस श्रवण सत्ताइसी” की रचना की, जो ऐतिहासिक विवरण से सम्पन्न है । इनके अतिरिक्त" जिन चउवीसी", "कृपण चरित्र" ( १५२३ ई०), "पंचेंद्रिय बेलि" ( १५२८ ई० ) और "नेमिश्वर बेलि" आदि रचनाएँ भी निबद्ध कीं । डॉ० कासलीवाल ने कवि की उपलब्ध ९ रचनाओं का उल्लेख किया है ।" इनमें से " मेघमाला व्रत कथा" और "चितामणि जयमाल" अपभ्रंश की हैं। इन रचनाओं के आधार पर कवि का रचना काल १५१८ ई० से १५३३ ई० भी माना गया है । १३. शाह ठाकुर : - अपभ्रंश में निबद्ध इनकी " शांतिनाथ चरित्र" नामक रचना मिलती है । यह प्रबन्ध काव्य १५९५ ई० में जलालुद्दीन बादशाह अकबर के शासनकाल में ढूंढाड़ देश के कच्छपवंशी राजा मानसिंह के काल में लिखा गया था 13 ये खंडेलवाल जाति के और लुहाड़िया गोत्र के थे । इनके गुरु अजमेर शाखा के विद्वान् भट्टारक सकलकीर्ति थे । ४ १४. मुनि महनन्दी :- ये भट्टारक वीरनन्दी के शिष्य थे । इनकी एकमात्र अपभ्रंश कृति “ बारक्खड़ी" या " पाहुडदोहा " उपलब्ध हुई है । इनकी १६३४ ई० की लिखित एक पांडुलिपि तेरहपंथी बड़े मन्दिर, जयपुर में क्रमांक १८२५, वेष्ठन संख्या १६५३ ई० में मिलती हैं । कहीं-कहीं इनका नाम महमंद ( महीचंद ) भी मिलता है ।" १५. दामोदर : - इन्होंने स्वयं को मूल संघ सरस्वती गच्छ और बलात्कार गण के भट्टारक प्रभाचन्द, पद्मनन्दि, शुभचन्द्र, जिनचन्द्र की परम्परा का बतलाया है । चूँकि जिनचन्द्र का राजस्थान से घनिष्ठ सम्बन्ध था, अतः ये भी राजस्थान से संबद्ध माने जा सकते हैं । इनकी कृतियाँ "सिरिपाल चरिउ", " चन्दप्पचरिउ" तथा "णेमि - णाह चरिउ" उपलब्ध होती हैं । द्वितीय कृति की एकमात्र पांडुलिपि नागौर के शास्त्र भण्डार में है । (३) संस्कृत साहित्य एवं साहित्यकार : १३वीं से १६वीं शताब्दी के मध्य विभिन्न दिगंबर एवं श्वेताम्बर मुनियों के द्वारा विपुल संस्कृत साहित्य सृजित किया गया । आचार्यों एवं उनकी कृतियों का विवरण निम्न है : :--- १. अने० १६, किरण ४, पृ० १७० - १७१ । २. राजैसा, पृ० १४८ । ३. जैग्रप्रस, पृ० १३० । ४. वही, पृ० १३०-१३१ । ५. राज संत, पृ० ७५ । जैसरा, पृ० २३१ | ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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