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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३५१ . बनाये । कुछ स्तोत्र फारसी भाषा में भी लिखे । वर्तमान में इनके ७५ स्तोत्र उपलब्ध हैं।
२. ठक्कर फेरू-१३वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्राकृत ग्रन्थकारों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है । ये धंधुक कुल के कलश श्रेष्ठी के पुत्र व कन्नाणपुर निवासी थे । ये अलाउद्दीन खिलजी के खचांजी भी रहे । इनके “वास्तुसार", "गणितसार कौमुदी', "ज्योतिस्सार" आदि ग्रन्थ प्राकृत में हैं । इनके वंश के आधार पर इन्हें राजस्थान का माना जाता है।
३. नेमिचंद्र भण्डारी-जिनपति सूरि के विद्वान् श्रावक नेमिचन्द्र ने प्राकृत में "षष्टिशतक प्रकरण", "जिनवल्लभ सूरि गुणवर्णन", "पार्श्वनाथ स्तोत्र" आदि रचनाएँ लिखीं । ये मरुकोट के रहने वाले थे। इनका समय १२वीं, १३वीं शताब्दी माना जाता है।
४. गुण समृद्धि महत्तरा-ये राजस्थान के प्राकृत साहित्यकारों में एकमात्र महिला ‘एवं साध्वी लेखिका थीं, जो जिनचन्द्र सूरि की शिष्या थीं। इन्होंने १३५० ई० में जैसलमेर में ५०४ गाथाओं में "अंजना सुन्दरी चरित" की रचना की थी।
५. जिनहर्षगणि-इन्होंने १५वीं शताब्दी में चित्तौड़ में "रत्नशेखरी कथा" गच. पद्य में लिखी थी। इसमें संस्कृत एवं अपभ्रंश पद्य भी मिलते हैं । यह प्राकृत की सुन्दर प्रेम कथा है । जायसी कृत “पद्मावत” को इसका पूर्व रूप कह सकते हैं। इन्होंने "वस्तुपाल तेजपाल चरित्र" भी लिखा ।"
६. रत्नशेखर सूरि-ये नागपुरीय तपागच्छ से सम्बन्धित थे। अतः इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान भी रहा होगा । ये १५वीं शताब्दी के विद्वान् थे । इन्होंने “छन्दकोष" की रचना की । कई प्राकृत छन्दों के लक्षण इस ग्रन्थ में वर्णित हैं।
७. कवि राजमल्ल-इन्होंने १६वीं शताब्दी में "छन्दोविद्या" की रचना राजा भारमल्ल के लिये की थी। भारमल्ल श्रीमाल वंशीय एवं नागौर का संघाधिपति था । अतः ये कवि राजस्थान से सम्बन्धित थे ।
८. जिनभद्र सूरि (१३९२ ई०-१४५७ ई.)-ये खरतरगच्छीय जिनराजसूरि के
१. राजैसा, पृ० ४२ । २. जैसासइ, ५, पृ० २४२ । ३. जिनचन्द्र स्मृग । ४. जैसलमेर भण्डार को ग्रन्थ सूची, पृ० ४९ । ५. जैसासइ, पृ० ३६० । ६. शाह, जैसाबृइ, ५, पृ० २०२-२०३ ।
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