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३५० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म की छाप लिये हुये है ।' आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी यह माना है कि हिन्दी का परवर्ती साहित्य अपभ्रंश साहित्य से क्रमशः विकसित हुआ।।
डॉ० गणपतिचन्द्र गुप्त हिन्दी के प्रथम कवि के रूप में शालिभद्र सरि को मान्यता देते हैं । उनके शब्दों में, "जैन कवियों द्वारा रचित कुछ ऐसे रासकाव्य प्रकाश में आये हैं, जिनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है तथा जिनकी भाषा हिन्दी के प्रारम्भिक रूप में स्वीकृत की जा सकती है। इन रचनाओं में कालक्रम तथा भाषा के विकास को दृष्टि से सर्वप्रथम शालिभद्र सूरि कृत "भरतेश्वर बाहुबलि रास" है, जिसका रचनाकाल ११८४ ई० है ।"3
११७३ ई० में हेमचन्द्राचार्य ने अप्रभ्रंश भाषा का दूसरा रूप "ग्राम" माना है। वस्तुतः यही भाषा आगे चलकर राजस्थानी व अन्य देशी भाषाओं के रूप में विकसित हुई । हेमचन्द्र का समय १०८८ ई० से ११७२ ई० था। अतः १२वीं शताब्दी में हिन्दी का जन्म माना जाना चाहिये । भाषा के लिये “हिन्दी" संज्ञक प्रयोग सर्वप्रथम "सियरूल ओलिया" में मिलता है। यह एक फारसो पुस्तक है। इसके लेखक मौलाना सय्यद मबारक ने शेख फरीदुद्दीन शकरगंज (११७३ ई० से १२६५ ई०) के सम्बन्ध में एक घटना के वर्णन में 'हिन्दी" शब्द का प्रयोग किया है। बाद में अमीर खुसरो ने अपनी कई रचनाओं में भारतीय भाषाओं के लिये "हिन्दुई" शब्द का प्रयोग किया। (ब) मध्यकाल :
१३वीं से १६वीं शताब्दी तक विभिन्न भाषाओं के साहित्य में वृद्धि हुई । इस काल में ग्रन्थों का प्रतिलिपिकरण, भाष्य, टीकायें, बालावबोध आदि भी सृजित हुये । (१) प्राकृत भाषा साहित्य एवं साहित्यकार:
१. जिनप्रभसूरि-ये दिल्ली के सुलतान मुहम्मद तुगलक के समकालीन व विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। श्रीमालवंशीय, लाडनू निवासी, जिनप्रभसूरि ने १२६९ ई० में जैन दीक्षा ग्रहण कर, १२८४ ई० में जिनसिंह से आचार्य पद प्राप्त किया। इन्होंने अहिछत्रपुर, सत्यपुर, फलौधी इत्यादि में विहार करके "विविध तीर्थ कल्प'४ नामक प्राकृत साहित्य का एक सुन्दर ग्रन्थ लिखा। इसके अतिरिक्त “कातंत्रविभ्रम वृत्ति", "श्रेणिक चरित्र", "द्वयाश्रय काव्य", "विधिमार्गप्रपा' आदि अनेक ग्रन्थ लिखे । अगरचन्द नाहटा के अनुसार इन्होंने संस्कृत, प्राकृत देश्यभाषा के लगभग ७०० स्तोत्र
१. वर्मा, रामकुमार, हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास । २. द्विवेदी, हिन्दी साहित्य, पृ० १६ । ३. गणपति चन्द्रगुप्त, हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास, पृ० १०९ । ४. सिजैसी, बम्बई से प्रकाशित ।
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