SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म "प्रश्नोत्तरकषष्टिशत काव्य", "अष्टसप्ततिका", अपरनाम "चित्रकूटीय वीर चैत्य प्रशस्ति" (११०६ ई०) एवं "भावारिवारण" स्तोत्रादि' हैं। १०. पूर्णभद्र-इन्होंने १११९ ई० में संस्कृत भाषा में "पंचतंत्र' की रचना की । ११. आचार्य अमृतचंद्र सूरि-विद्वानों ने इनका समय ११वीं शताब्दी माना है । नाथूराम प्रेमी के अनुसार माधवचन्द्र के शिष्य अमृतचन्द बामनवाड में आये, जहाँ उन्होंने रल्हण के पुत्र सिंह या सिंह कवि को "पज्जुण्णचरिउ" लिखने की प्रेरणा दी । यदि बयाना के निकट का बामनवाड़ ही उक्त स्थान है, तो अमृतचंद्र ने राजस्थान को भी पर्याप्त समय तक अलंकृत किया होगा। राजस्थान के विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों में इनके ग्रंथों का विशाल संग्रह मिलता है। इन्होंने आचार्य कुंदकुंद के "समयसार", ''प्रवचनसार" एवं "पंचास्तिकाय" पर टीका लिखी। इन्हीं की टीकाओं के कारण कुंदकुंद के ग्रन्थों का रहस्य उजागर हुआ। इनकी अन्य रचनाएँ “पुरुषार्थ सिध्युपाय", "तत्त्वार्थसार" एवं "समयसार कलश' भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं । १२. जिनपति सूरि (११५३ ई०-१२२० ई०)-ये खरतरगच्छ के मणिधारी जिनचंद्र सूरि के शिष्य थे। इनका जन्म ११५३ ई० में बीकमपुर में हुआ तथा ११७६ ई० में आचार्य हुए । इनके मुख्य कार्य ११७१ ई० में नृपति भीमसिंह के समक्ष महाप्रामाणिक दिगम्बर विद्वान् के साथ शास्त्रार्थ में विजय, ११८२ ई० में अजमेर में अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सभा में पद्मप्रभ के साथ शास्त्रार्थ में विजय और प्रद्युम्नाचार्य के साथ शास्त्रार्थ में विजय हैं । इनकी प्रमुख संस्कृत रचनाएँ-"संघपट्टक बृहद वृत्ति", "पंचलिंगी प्रकरण टीका", "प्रबोधोदय वादस्थल", कतिपय स्तोत्र आदि हैं । १३. जिनपालोपाध्याय (११५७ ई०-१२४५ ई०)-ये जिनपति सूरि के शिष्य थे। इनकी दीक्षा ११६८ ई० में पुष्कर में हुई थी। इनके द्वारा रचित "सनत्कुमार चक्रिरचित" श्रेष्ठ कोटि का महाकाव्य है और १२४८ ई० में रचित "युगप्रधानाचार्य गुर्वावली” ऐतिहासिक दृष्टि से एक अद्वितीय रचना है । इसके अतिरिक्त इन्होंने १२०५ ई० में “षट्स्थानक प्रकरण टोका", १२३५ ई० में "उपदेश रसायन विवरण", १२३६ ई० में 'द्वादशकुलक विवरण", १२३६ ई० में ही "धर्मशिक्षा विवरण", १२३७ ई० में "चर्चरी विवरण" आदि की भी रचना की। १. जैसासइ, पृ० २३१-२३२ । २. जैसाऔइ, पृ० ३४० । ३. राजैसा, ९६ । ४. जैसासइ, पृ० ३३५-३३६ । ५. वही, पृ० ३९५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy