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________________ जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३३९ व्याख्या लिखी।' इन्होंने "अनादि सूत्र", "धातुपाल" और लिंगानुशासन" भी लिखे। इसके अलावा इन्होंने ४ शब्दकोष, “अभिधान चिन्तामणि", "अनेकार्थ संग्रह", ''देशीनाम माला", "निघंटुशेष" भी लिखे । २३. सिंह कवि-ऐसा उल्लेख है कि सिंह कवि ने १२वीं शताब्दी में बम्मणवाड (ब्राह्मणवाड) सिरोही में "पज्जुण कहा" की रचना की थी। २४. देवेन्द्र सूरि-आबू में विचरण करते समय इन्होंने 'सुदसणा चरिय" एवं "कण्ह चरिय" नामक प्राकृत ग्रन्थों की रचना की।५ इनका समय १२वीं शताब्दी माना जाता है। २५. आसड कवि-ये भिन्नमाल कुल में उत्पन्न हये थे। इन्होंने ११९४ ई० में "विवेगमंजरी" नामक प्राकृत ग्रन्थ लिखा । २६. गुणचन्द्र गणी-ये जिनेश्वर सूरि को शिष्य परम्परा में सुमति वाचक के शिष्य थे । इन्होंने गुजरात में अधिक रचनाएँ लिखीं, किन्तु खरतरगच्छीय आचार्यों का कार्यक्षेत्र राजस्थान भी रहा है, अतः इनका राजस्थान से सम्बन्ध माना जा सकता है। इनका समय १२वीं शताब्दी था। "कहारयणकोस" और "पासनाह चरियं" इनकी प्रसिद्ध प्राकृत रचनाएं हैं । “कहारयण कोस" की रचना ११०१ ई० में भरूकच्छ नगर के मुनिसुव्रत चैत्यायन में की गयी थी। इसमें यत्र-तत्र अपभ्रंश व संस्कृत का भी प्रयोग हुआ है। २७. लक्ष्मणगणी-११४२ ई० में मांडलगढ़ में लक्ष्मणगणी ने "सुपासनाह चरिय" की रचना की। २८. धर्मघोष सूरि :-इन्होंने ११२९ ई० में "धर्मकल्पद्रुम" की रचना की। इनका शाकंभरी के चौहान शासक विग्रहराज पर अत्यधिक प्रभाव था।' २९. यशचन्द्र :-ये शाकम्भरी के वणिक पद्मचन्द के पुत्र थे । १२वीं शताब्दी में १. जैसासइ, पृ० ३१० । २. वही, पृ० ३०२-३०६ । ३. वही, पृ० ३०९। ४. जैसरा, पृ० २२७ । ५. जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ५६१ । ६. वही, पृ० ४४८ । ७. जैसासइ ; पृ० २७५ । ८. राभा, ३, अंक २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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