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३३८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
१८. बुद्धिसागर सूरि-ये जिनेश्वर सूरि के भाई और वर्धमान सूरि के शिष्य थे । इन्होंने १०२३ ई० में जालौर में प्राकृत और संस्कृत भाषा पर व्याकरण लिखा, जिसका नाम " पंचग्रन्थी" या ' बुद्धिसागर व्याकरण" था ।"
१९. कवि धनपाल - ११वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि धनपाल का भी राजस्थान में सांचौर से सम्बन्ध रहा । इन्होंने प्राकृत में 'पाइयलच्छीनाममाला" ग्रन्थ की रचना की ।
२०. जिनवल्लभ सूरि - ( १०३३ ई०-१११० ई०) ये कुर्चपुर ( कुचेरा-मारवाड़) की गादी के अध्यक्ष आचार्य जिनचन्द्र के शिष्य थे । इन्होंने अपने कुछ ग्रन्थ चित्तौड़, नरवर, नागौर और मरूपुर के जिनालयों में उत्कीर्ण करवाये थे । 3 इन्होंने " संवेगरंगशाला" का संशोधन किया तथा " पिंडविशुद्धि " की १०३ गाथाओं की रचना की । इनके अन्य ग्रन्थ भी ज्ञात हुए हैं, जैसे - " द्वादश कुलक", " सूक्ष्मार्थं सिद्धान्त विचार सार" या " सार्धं - शतक", "पौषध विधि प्रकरण", "भावारिवारण स्तोत्र", " अजित शान्ति स्तव", "स्वप्न सप्ततिका", "आगमिक वस्तु विचार सार", कतिपय स्तोत्र आदि । ४
२१. जिनवत्त सूरि-ये मारवाड़ के कल्पवृक्ष माने जाते हैं । लोकख्याति के कारण इन्हें "दादा" की पदवी से सुशोभित किया गया था । ये जिनवल्लभ सूरि के पट्टधर थे । इन्हें चित्तौड़ में १११२ ई० में आचार्य पद मिला व ११५४ ई० में अजमेर में इनका स्वर्गवास हुआ । इनके द्वारा रचित कतिपय ग्रन्थ इस प्रकार हैं - '' गणधर सार्थ " "सर्वाधिष्ठाधिस्तोत्र", "विघ्नविनाशी स्तोत्र", "सुगुरु पारनन्त्र्यम", "चैत्यवंदन कुलक", " सन्देह दोहावली" "गण सप्तति ६ आदि ।
शतक'
२२. हेमचन्द्र – ये अभयदेव सूरि के शिष्य थे । इन्होंने १११३ ई० में मेड़ता और छत्रपल्ली में " भवभावना"७ नामक ग्रन्थ लिखा, जो इनकी प्रसिद्ध प्राकृत रचना है । " इसमें संस्कृत गद्य और अपभ्रंश पद्य भी हैं । " उपदेशमाला प्रकरण" इनकी दूसरी महत्त्वपूर्ण रचना है । इन्होंने "काव्यानुशासन" व उस पर "अलंकार चूडामणि" नामक
१. जैसरा, पृ० २१६ ॥
२. सत्यपुरीय महावीर उत्साह में उल्लेख |
३. जैसरा, पृ० २२६ ।
४. जैसासइ, पृ०२३१-२३२ ।
५. जैसास, पृ० २३३ । ६. वही ।
७. वही ।
८. जैन जगदीश चन्द्र, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ५०५ ।
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