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३२८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधमं
(९) अहिंसा प्रधान जैन धर्म में जीव दया और लोकोपकार की जो महती भावना सर्वत्र व्याप्त है, जैन कलाकारों ने उससे प्रेरणा प्राप्त कर ऐसी कलाकृतियों का निर्माण किया, जिनमें अपार शांति और अपार्थिव विश्रांति का भाव ध्वनित होता है । इन कृतियों को इतनी मान्यता प्राप्त होने का एक कारण यह भी है कि इनमें महान् मानवीय आदर्शों को प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास हुआ है । "
(१०) जैन वास्तुकला धर्माश्रित वास्तुकला की विलक्षणता को प्रकट करती है । सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन के साथ, स्थापत्य की शैलियाँ भी विकसित व परिवर्तित होती रहीं । पूर्व मध्यकाल में सूक्ष्मता व दक्षता चरम सीमा पर पहुँच जाती है, जिसमें मूर्ति-तक्षण और मन्दिर निर्माण की शैलियों में समन्वय दिखाई देने लगता है । स्थापत्य की यह नवचेतना सांस्कृतिक विजय का उज्ज्वल प्रमाण है । मानव के धार्मिक विकास और संरक्षण में शिल्पी ने दार्शनिक व कलाकार की हैसियत से इस युग के स्तर को ऊपर उठाने में बड़ा योगदान दिया ।
(११) इस समूचे काल की मूर्तिकला को ही प्रभावित किया, आभारित किया । इन मन्दिरों से क्रमिक विकास स्पष्ट होता है । होती है ।
सौन्दर्य तथा आध्यात्मिक चेतना ने न केवल वरन् मन्दिर निर्माण योजनाओं को अपने स्पर्श से उस युग के सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास का इनको देखने से सौन्दर्य एवं शांति की आभा प्रस्फुटित
( १२ ) स्थापत्य पर वातावरण के प्रभाव के यथोचित महत्त्व को समझते हुये, हिन्दुओं की अपेक्षा जैनों ने अपने मन्दिर निर्माण के लिये सदैव प्राकृतिक स्थानों को ही चुना
(१३) जैन कला और स्थापत्य में जैन धर्म और जैन संस्कृति के सैद्धांतिक और भावनात्मक आदर्श अत्यधिक प्रतिफलित हुये हैं ।
(१४) जैन कला के स्वर्णं युग के प्रतीकों और मन्दिरों में, आचार प्रतिपादक दृश्यों और परम्परागत शिल्पी सिद्धान्तों में वैविध्य और वैचित्र्य दिखाई देता है । तोरण द्वारों, गुम्बजों, सभा मण्डपों व विविध स्तरों में भाव सूचक शिल्प के उत्कृष्ट नमूने दिखाई देते हैं । देलवाड़ा समुदाय के मन्दिरों के उत्कीर्णन में कलाकार ने धैर्य और गाम्भीर्य को प्रधानता दी है । इसी प्रकार अर्थणा, ओसिया, नाडौल, नागदा आदि के विविध मन्दिरों
१. वाचस्पति गैरोला - भारतीय चित्रकला का इतिहास, पृ० ५०-५२ ।
२. एइ, ३४, अंक २, पृ० ५३-५८ ।
३. एरिराम्यूअ १९२९, पृ० १-२ ॥
४. लॉगहर्स्ट, हम्पी रूइन्स, मद्रास, पृ० ९९ ।
५. ज्योति प्रसाद जैन —जैन सोर्सेस ऑफ द हिस्ट्री ऑफ एन्श्येन्ट इंडिया, अ० १० ।
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