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________________ १२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म साथ ही विभिन्न जातियों एवं गोत्रों की उत्पत्ति एवं विकास के सम्बन्ध में भी बताती हैं । इनसे राजनीतिक इतिहास का निर्माण करने में भी सहायता मिलती है । राजा मालदेव ने जोधपुर को शेरशाह से तेजागढय्या की सहायता से पुनप्ति किया था, यह तथ्य हमें एक वंशावली से ही ज्ञात होता है । १६वीं से १८वीं शताब्दी की ओसवाल वंशावलियां बीकानेर में अगरचंद नाहटा के संग्रहालय में हैं । ज्ञानसुन्दर के अधिकार में भी वंशावलियों का अच्छा संग्रह था।२ इनसे मंदिरों एवं प्रतिमाओं के निर्माण तथा तीर्थयात्रा के लिये गठित संघों का विवरण भी मिलता है । ६. तीर्थ माला और तीर्थ स्तवन : ये जैन मुनियों द्वारा लिखित एवं संग्रहीत विवरण हैं, जिन्हें वे विभिन्न तीर्थों की चातुर्विध संघ के साथ की गई धर्मयात्राओं के समय अंकित करते थे। कई बार वे अकेले भी यात्रा करते थे। इनमें तीर्थों के नाम, उनका इतिहास, सम्बद्ध चमत्कार, तीर्थ का महत्त्व, मन्दिरों व प्रतिमाओं आदि का वर्णन होता है। १४वीं शताब्दी के आसपास जिनप्रभसूरि रचित "विविधतीर्थकल्प" और सौभाग्यविजय तथा शीलविजय कृत "तीर्थमाला" कुछ जैन सन्तों की जीवन झाँकी प्रस्तुत करने की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें मन्दिरों के निर्माण और प्रतिमाओं की स्थापना का विवरण भी मिलता है। धनपाल विरचित, कविता "सत्यपुरीय महावीर उत्साह" में सांचोर, आहड़, श्रीमाल, कोरटा और नरैणा आदि तीर्थ स्थानों का वर्णन है, जो १०वीं शताब्दी में अस्तित्व में थे। १२वीं शताब्दी के सिद्धर्षि के "सकल तीर्थ स्तवन" में तीर्थ स्थानों की सूची है।४ १४४६ ई० में रचित "उपदेश सप्ततिका" में भी कुछ तीर्थों का वर्णन है।" जिनवर्द्धन सूरि रचित “पूर्व देश तीर्थ माला", सिद्धसेन सूरि का "सकल तीर्थ स्तोत्र", शांतिकुशल विरचित "गौड़ी पाश्वं तीर्थमाला" भी तीर्थों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देती है। धर्मघोष गच्छ के पद्मानंद सूरि के शिष्य हरिकलश ने कई देशों की यात्राएँ की। इनके द्वारा रचित निम्न तीर्थमालाएँ ज्ञात है-कुरुक्षेत्र तीर्थमाला, दक्षिण देश तीर्थमाला, गुर्जर सौरठ-देश तीर्थमाला, दिल्ली मेवाती देश चत्य परिपाटी, बागड़ देश तीर्थमाला, आदीश्वर बीनती, जीरावल्ला बीनती आदि। मध्यकाल में चैत्य १. अने०, भाग २, सं० ६, पृ० २४९ । २. एसिटारा, पृ० १६ । ३. जैसासन, अहमदाबाद, ३ पृ० १ । ४. गाओसि, जि० ७६, पृ० १५६ । ५. एसिटारा, पृ० १३ । । ६. शोप, वर्ष ३७, अंक २, पृ० ३८ । ७. ये ग्रन्थ अभय जैन ग्रन्थ भण्डार बीकानेर में हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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