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साधन स्रोत : ११ * आचार्य भुवनकीर्ति को १४५१ ई० में भट्टारक होना स्वीकार किया गया है, जबकि कई पट्टावलियों में इन्हें भट्टारक होना स्वीकार नहीं किया गया ।" सोमकीर्ति रचित "गुर्वावली" से काष्ठा संघ के इतिहास का बोध होता है । यह कृति साहित्य के इतिहास की दृष्टि से बहुत मूल्यवान है । मूलसंघ पट्टावली से आचार्यों की विभिन्न नगरों में गतिविधियों का भी ज्ञान होता है । क्षेमेन्द्र कीर्ति रचित भट्टारक पट्टावली से भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ।
विविध गच्छों को पट्टावलियों के संग्रह के रूप में चार ग्रन्थ विशेष उल्लेखनीय हैं । प्रथम - मुनि दर्शन विजय द्वारा सम्पादित "पट्टावली समुच्चय", २ भागों में है । इसके प्रथम भाग में कल्पसूत्र, नन्दीसूत्र की स्थविरावलो, तपागच्छ की कई पट्टावलियाँ, उपकेश गच्छीय पट्टावली आदि तथा द्वितीय भाग में कच्छूलीगच्छ, पूर्णिमागच्छ, आगमगच्छ, बृहदगच्छ एवं केवलागच्छ की पद्यबद्ध भाषा पट्टावलियों का संग्रह है । द्वितीय ग्रन्थ---- - मोहन लाल देसाई के "जैन गुर्जर कवियों" के भाग २ व ३ के परिशिष्ट में विभिन्न पट्टावलियों का गुजराती में सारांश है । तृतीय प्रयत्न मुनि जिनविजय का "विविध गच्छीय पट्टावली संग्रह " है । इसमें प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी एवं गुजराती आदि भाषाओं की पट्टावलियों का संग्रह है । चतुर्थं प्रयास जैन इतिहासविद् मुनि कल्याणविजय का "श्री पट्टावली पराग संग्रह " है, जिसमें छोटी-बड़ी ६४ पट्टावलियों का सारांश है । " पट्टावली प्रबंध संग्रह" में लोंकागच्छ की सात पट्टावलियोंपट्टावली प्रबंध, गणी तेजसी कृत पद्य पट्टावली, संक्षिप्त पट्टावली, बालापुर पट्टावली, aster पट्टावली, मोटा पक्ष की पट्टावली और लोंका गच्छीय पट्टावली; तथा स्थानक -- वासी परम्परा की दस पट्टावलियों विनयचन्द कृत पट्टावली, प्राचीन पट्टावली, जीवराज जी की पट्टावली, खंभात पट्टावली, गुजरात पट्टावली, भूधरजी की पट्टावली, मरुधर पट्टावली, मेवाड़ पट्टावली, दरियापुरी संघ पट्टावली और कोटा परम्परा की पट्टावली आदि का संग्रह है । इनमें प्रदत्त सूचनाएँ जैनधर्म के इतिहास निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । पट्टावलियों में दी गई जानकारी पूर्णरूपेण प्रामाणिक व स्पष्ट नहीं कही जा सकती है, फिर भी आलोचनात्मक परीक्षण के उपरान्त ये बहुत उपयोगी. साधन सिद्ध होती हैं ।
५. वंशावलियाँ :
वंशावलियाँ भी जैन इतिहास को जानने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई हैं । ये जैन समुदाय में उत्पन्न होने वाले प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन पर तो प्रकाश डालती ही हैं..
१. तारा मंगल - महाराणा कुंभा और उनका काल, पृ० १५१ ।
२. कासलीवाल - राजस्थान के जैन संत व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० ४४ ।
३. वही, पृ० ५० ॥
४. नाहटा, अगरचंद - पट्टावली प्रबंध संग्रह की भूमिका, पृ० ३७ ।
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