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३२६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
लगभग ७-८ हजार मूर्तियाँ हैं। पार्श्वनाथ के मन्दिर की छत में एक मूर्ति, एक सिर और पाँच धड़ों की निराली शोभा के साथ प्रदर्शित है। किसी भी कोण से देखने पर दर्शक को यह मूर्ति अपने सामने ही प्रतीत होती है। इसी मन्दिर के बाहर एक पत्थर पर अनेक छोटे-छोटे मन्दिर एवं मूर्तियाँ अंकित है । यहाँ जौ के आकार जितने मन्दिर में एक लघुतम जिन मूर्ति है, जिसको देखने के लिये दूरबीन की आवश्यकता होती है । रूपप्रद कला की यह अनुपम कृति है। (३) वर्णनात्मक रूपांकन :
राजस्थान के अनेक जैन मन्दिरों में बारीक तक्षण के माध्यम से अनेक कथा प्रसंग व घटनाओं के चित्रण रूपांकित हैं। सिरोही राज्य के कोलर के जैन मन्दिर के प्रवेश द्वार पर मकराना की एक प्रस्तर लाट पर, किसी तीर्थंकर के जीवन की काल्पनिक कहानी तराशी हुई है। बायें कोने में एक रानी छत्र लगे हुये तख्त पर विश्रामरत है । इससे क्रमशः दायी तरफ हाथी, साँड, घोड़ा, सूर्य एवं चन्द्र, कुश, कलश, चहर-दीवारी वाला नगर, नदी, मन्दिर, सहस्त्र-लिंग और रथ चित्रित हैं। बाँयें कोने पर उत्कीर्ण वाक्यांश के आधार पर इस रूपांकन में महारानी त्रिशला देवी १४ स्वप्न देख रही हैं । सिरोही राज्य के कालंदरी स्थान के महावीर जैन मन्दिर के गर्भगृह पर एक तराशी हुई चित्रपंक्ति है, जिसमें एक भक्त कपोत को कुछ खिला रहा है। आबू के जैन मन्दिरों में वितानों एवं अन्य सतहों पर रामायण और महाभारत काव्यों की असंख्य घटनाओं के रूपप्रद अंकन हैं। कृष्ण जन्म का दृश्य और उनकी विविध लीलायें निपुणता से उकेरी हुई हैं। रूपांकन की घटनायें व कथानक "शत्रुजय माहात्म्य" से भी लिये गये हैं। रंग मण्डप में भरत बाहुबलि युद्ध का दृश्य, नेमिनाथ की बारात आदि महीन पारदर्शकता के साथ तराशे हुये हैं। तीर्थंकरों के पूर्व भव की घटनायें सुन्दरता से रूपायित है। राजस्थान के अनेकों जैन मन्दिरों में इस प्रकार के असंख्य रूपप्रद अंकन हैं। (य) जैन कला-निष्कर्ष एवं समालोचना :
(१) जैन शैली के चित्रों में सबसे बड़ी विशेषता उनके चक्षु चित्रण में है, जो जैन स्थापत्य एवं शिल्प से आई है। प्राचीन जैन प्रतिमाओं में यह रूप देखा जा सकता है । इनमें नेत्र उठे हुये और बाहर की ओर उभरे हुये हैं तथा इनको लम्बाई कानों को छूती हुई तथा भवों एवं नेत्रों का फैलाव समान है।
(२) चित्रों में रंग-संयोजन की दृष्टि से पृष्ठभूमि में बहुधा लाल रंग का प्रयोग किया गया है। आवश्यकतानुसार पीले, नीले, श्वेत तथा अन्य रंग भी प्रयुक्त हुये हैं । ताड़पत्रों पर अंकित जैन चित्रों में प्रायः पीले रंग का प्रयोग हुआ है। स्वर्ण रंग
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