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________________ जैन कला : ३२५ बिम्ब उकेरे गये हैं । मारवाड़ में सेवाड़ी महावीर मन्दिर के गर्भगृह की बाह्य दीवारों पर सुन्दर आकृतियाँ रूपायित है, जो १०वीं शताब्दी के पूर्व की प्रतीत होती हैं । दक्षिण में तीन आकृतियां हैं । प्रथम एक नाग स्त्री की है, जिसके कानों में कुण्डल व झुमके, बाँयें हाथ में ढाल व दायें हाथ में खण्डित खड्ग है। इसके सिर पर सर्प फण का छत्र है। सर्प की कुण्डलियाँ पाँवों को छू रही हैं । दूसरी आकृति एक ताक में कायोत्सर्ग मुद्रा में, गले में हार व कौपीन धारण किये हुये हैं । आले के ऊपर पद्मासनस्थ जिनाकृतियां हैं । तृतीय आकृति एक नग्न क्षेत्रपाल की है, जिसके ऊपर वाले हाथ में सर्प व दूसरे में दण्ड है । उत्तरी दीवार पर भी तीन आकृतियाँ हैं। केन्द्रीय आकृति एक ताक में है। दूसरी आकृति कुछ खण्डित सी है, जिसके दाहिने पाँव के नीचे उसका वाहन मनुष्य है । इसके कान छिद्रित हैं, जिनमें बालियां हैं। तीसरी आकृति खड़ी हुई ब्रह्मा की है, जिनके एक हाथ में कमण्डलु व दूसरे में गुलाब की डाली है। उनके दाढ़ी है तथा पांव में खड़ाव हैं । बन्द सभा मण्डप में जैन गुरु की एक आकृति है, जो सिंहासन पर बैठे हैं व पाँव एक पीठिका पर हैं। एक शिष्य पाँव साफ कर रहा है, पीछे पोथी स्टेण्ड पर दूसरा शिष्य कागज को फैला रहा है। तीसरा शिष्य उनके उगौर को पकड़े हुये है । सामने पानी की सुराही और तख्त है। गुरु के वाम स्कन्ध के पास भी एक उगोर है। गुरु की पीठ पर तकिया, बाँयें हाथ में ग्रन्थ व दाहिना छाती के पास है। उनके गले में एक हार भी है। इसके अतिरिक्त सामने के बरामदे में एक सरस्वती की आकृति ___ आबू के जैन मन्दिरों में सरस्वती व अम्बिका की आकृतियों के सुन्दर रूपप्रद अंकन हैं । विमल वसहि मन्दिर के पुरातत्त्व संग्रह की पंक्ति में सरस्वती की एक सुन्दर रूपाकृति है, जिसके चारों हाथों में पुस्तक, कमण्डल, वीणा व गुलाब प्रदर्शित हैं। इसी मन्दिर में एक वितान पर १६ भुजाओं वाली सरस्वती प्रतिमा है, जिसके चारों तरफ नृत्यरत पुरुषाकृतियां हैं। भद्रासन में विराजित देवी के दाहिने हाथों में कमल, कौंच व वरद-मुद्रा तथा तीन बायें हाथों में कमल, पुस्तक व कमण्डल दिखाई देते हैं । शेष हाथ खण्डित हैं । आधार में हंसाकृति है। लूणवसहि मन्दिर के स्तम्भ पर सरस्वती की भद्रासन में विराजमान आकृति है, जो पूर्वोक्त आकृति से साम्य रखती है। केवल बाँयें हाथ में पुस्तक के स्थान पर कमण्डल है । _ विमलवसहि के मन्दिर के एक वितान में देवी अम्बिका की बीस भुजाओं वाली रूपप्रद आकृति है । अम्बिका ललितासन में सिंहारूढ़ हैं। इनके हाथों में खड्ग, शक्ति, सर्प, गदा, ढाल, कुल्हाड़ी, कमण्डल तथा अभय और वरद मुद्राएँ प्रदर्शित हैं । शेष चिह्न आंशिक या पूर्ण भग्न हैं। देवी ने मुकुट, बालियाँ, कुण्डल, हार, माला, मेखला, बाजूबंद, अधोवस्त्र और उत्तरीय धारण किया हुआ है। जैसलमेर के जैन मन्दिरों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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