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________________ जैन कला : ३२१ अन्य जैन मन्दिर : सादड़ी का मन्दिर, जो प्राकृतिक सौन्दर्य के मध्य, घाटी में अवस्थित है, राणा कुम्भा के द्वारा बनवाया गया सबसे जटिल और विशाल जैन मन्दिर है । २००४ २०० फीट के लगभग वर्गाकार क्षेत्र में विस्तृत परिसर के मध्य में गर्भगृह है, जिसमें ४ आले हैं और प्रत्येक आले में आदिनाथ की एक प्रतिमा है। उसके ऊपर ४ अन्य आलों में भी जिन मूर्तियाँ है ये आले भवन की छत पर खुलते हैं। प्रांगण के चारों कोनों में चार देवालय और उनके चतुर्दिक ४२० स्तम्भों पर टिके हुये बीस गुम्बद हैं । इनमें से ४ गुम्बद अर्थात् प्रत्येक समूह का मध्यवर्ती गुम्बद ऊँचाई में तीन मंजिला है, और अन्य गुम्बदों से ऊँचा दिखाई देता है। प्रवेश द्वार का गुम्बद १६ स्तम्भों पर आधारित ३६ फीट व्यास का है, जबकि अन्य गुम्बद २४ फीट व्यास वाले हैं। भवन में प्रकाश का आगमन ४ खुले हुये प्रांगणों से होता है। सम्पूर्ण मन्दिर छोटे-छोटे कक्षों से घिरा है तथा प्रत्येक कक्ष के ऊपर पिरामिडनुमा छत है । मध्यवर्ती शिखर में निर्मित १२ कक्षों के अतिरिक्त, विभिन्न आकार-प्रकार के ८६ कक्ष आन्तरिक क्षेत्र को घेरे हुए हैं, जिनके सभी हिस्से उत्कृष्ट तक्षण से अलंकृत हैं । अधिकांश कक्षों में तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। मन्दिर का समेकित स्वरूप दर्शक पर बहुत अनुकूल प्रभाव छोड़ता है। इस मन्दिर के बाह्य हिस्से में कोई सजावट नहीं है । फग्यूसन के अनुसार-"भवन में अत्यधिक छोटे-छोटे खण्डों का होना स्थापत्य के वैभव की दृष्टि से इसके अधिकार को कम करता है, किन्तु उनका वैविध्य तथा उनमें वर्णित सौन्दर्य का किन्हीं भी दो स्तम्भों में एक जैसा न होना, स्तम्भों को व्यवस्थित करने का शालीन ढंग, विभिन्न ऊँचाई के गुम्बदों का तालमेल, समतल वितान, प्रकाश के आगमन की सुनियोजित विधि, ये सब तथ्य संयुक्त रूप से अत्यधिक प्रभावित करते हैं । वास्तव में भारत में मुझे अन्य ऐसे किसी भवन की जानकारी नहीं है, जो इस श्रेणी का हो, जो इतना आलादकारी प्रभाव छोड़ जाय या जिसके आन्तरिक भाग में स्तम्भों का इतना सुन्दर संयोजन हो"।' जैसलमेर दुर्ग में चिन्तामणि पार्श्वनाथ, ऋषभदेव, शान्तिनाथ, संभवनाथ और महावीर जैन मन्दिर इसी काल में निर्मित हुए । पीत पाषाण में बारीक कुराई और अलंकरण को समृद्धि की दृष्टि से यहाँ के मन्दिर अद्वितीय हैं । मन्दिर के विभिन्न हिस्सों, गर्भगृह की दीवारों आदि पर पशु व मानव आकृतियाँ सुन्दर ढंग से तराशी हुई हैं। शिखर पर सुन्दर आमलक, छत्र व उस पर सुन्दर जल पात्र है, जिसमें एक कमल का फूल है । गर्भगृह के सामने भोग मण्डप व बरामदा है। एक अष्ट-कोणीय नट मण्डप भी है। १. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन एण्ड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, पृ० २४१-२४२ । २. विस्तार के लिए अध्याय चतुर्थ देखें। २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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