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जैन काल : ३१५
सम्भवतः बार-बार के जीर्णोद्धार से इनका रूप ही परिवर्तित हो गया। मारवाड़ में नाडलाई के १६ मन्दिरों के समूह में से पहाड़ी पर स्थित नेमिनाथ मन्दिर और तलहटी का आदीश्वर मन्दिर ११वीं शताब्दी के है, जो स्तम्भों की शैली और अभिलेखों से स्पष्ट होता है।' कोकिंद के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर का आन्तरिक वितान व छत ही प्राचीन है, जिसमें ११७३ ई० का लेख उत्कीर्ण है। सांचौर में एक पुरानी मस्जिद, जो मूलतः जैन मन्दिर थी, में अभी भी १२२० ई० और १२६५ ई० के अभिलेख विद्यमान हैं। जालौर में तोपखाना के नाम से जाना जाने वाला स्मारक, वस्तुतः १२वी व १३वीं शताब्दी में कुमारपाल द्वारा बनवाये गये मिश्रित शैली के तीन जैन मन्दिरों की सामग्री से बनाया हुआ है। इसी प्रकार घाणेराव महावीर मन्दिर का गर्भगृह, सभा मण्डप, प्रवेश मण्डप, कुछ कक्ष, तराशी गई जालियाँ, छज्जे आदि सम्भवतः ११वीं शताब्दी के हैं ।५ फलौधी के पार्श्वनाथ मन्दिर में ११६४ ई० का. अभिलेख है। सूरपुर का जैन मन्दिर भी अभिलेखीय साक्ष्य के अनुसार ११८२ ई० का है। जयपुर के निकट सांगानेर का सिंघी जी का जैन मन्दिर, भण्डारकर के अनुसार १५वीं शताब्दी का है, किन्तु गर्भगृह के बंदरवार पर ९५४ ई० के लेख से यह १०वीं शताब्दी का सिद्ध होता है। यहां की प्रतिमाओं पर ११वी व १२वीं शताब्दी के लेख हैं तथा नक्काशी के तक्षण और स्तम्भों की शैली की दृष्टि से इसको. तुलना आबू क्षेत्र के मन्दिरों से की जा सकती है। मन्दिर की योजना भी शास्त्रोक्तः मानदण्डों के अनुसार है । जयपुर नगर से तीन मील दूर, पुराना घाट बालाजी के. निकट का शिव मन्दिर, मूलतः १२वीं शताब्दी का एक जैन मन्दिर है। मन्दिर के दरवाजे के ऊपरी भाग के, बिना तिथि के संस्कृत लेख में, १२वीं शताब्दी के लेखों की. समस्त विशेषताएं है। यहीं पर ११६० ई० के लेख में आचार्यों व उनके शिष्यों के नाम हैं ।१०
१. प्रोरिआसवेस; १९०८-०९. पृ० ४३ । २. वही, १९१०-११, पृ० ३६-३७ । ३. वही, १९०७-०८, पृ० ३४ । ४. वही, पृ० ३५ । ५. वही, पृ० ५९। ६. वही, १९०९, पृ० ६० । ७. वही, १९११-१२, पृ० ५३ । ८. वही, १९०९-१०, पृ० ४७ । ९. संवत् १०११ लिखित पं० तेजा शिष्याचार्य पूर्णचन्द्र । १०. एरिराम्युअ, १९२०-२१, क्र० २, ३ ।
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