SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म झालरापाटन का १०४६ ई० में साह पोपा द्वारा निर्मित शांतिनाथ मन्दिर पुराने मन्दिर का नवनिर्मित रूप है। इसमें गर्भगृह व शिखर पुराने ही है, किन्तु नवनिर्मित मण्डप में कुछ हिन्दू देवताओं की आकृतियाँ भी हैं । २ अटरू में १२वीं शताब्दी के दो जैन मन्दिर हैं । एक मन्दिर में पार्श्वनाथ की खण्डित प्रतिमा है, किन्तु दूसरे मन्दिर की महावीर की विशाल एवं भारी प्रतिमा अभी अवशिष्ट है । शेष सारा मन्दिर खण्डहर है, जिसकी नीवें भी दिखाई देती हैं, जिससे एक योजनाबद्ध विशाल जैन मन्दिर की निमिति का आभास होता है। जैसलमेर के निकट लद्रवा का १२वीं शताब्दी का पार्श्वनाथ मन्दिर इस काल के तक्षण और स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूनों में से है । मन्दिरों के निचले हिस्से की स्थापत्य शैली विशुद्ध रूप से दक्षिण भारतीय हिन्दू शैली है जबकि ऊपरी हिस्से की पश्चिम भारतीय शैली है। यहाँ का तोरण व कल्पवृक्ष बहुत सुन्दर निर्मितियाँ हैं। ___इस काल में मुस्लिम विध्वंस के परिणाम स्वरूप कई मन्दिर ध्वस्त किये गये और उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी गई। जहाँ अभी जैन मन्दिर नहीं हैं या उनके खण्डहर मात्र अवशिष्ट हैं, वहाँ के विषय में फग्यूसन का अभिमत महत्त्वपूर्ण है"जहाँ भी मुसलमान संख्या में बसे, वहाँ प्राचीन जैन मन्दिरों के पाने की आशा करना व्यर्थ है । उन लोगों ने अपने धर्म के जोश में मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला है तथा जिन सुन्दर स्तम्भों, तोरणों को नष्ट नहीं कर सके, उनका बड़े चाव से अपनी मस्जिदों आदि के निर्माण में उपयोग कर लिया। अजमेर, दिल्ली, कन्नौज, धार व अहमदाबाद की विशाल मस्जिदें यथार्थतः जैन मन्दिरों की ही परिवर्तित निर्मितियाँ हैं ।'४ यहीं नहीं, फग्यूसन ने वास्तु-शास्त्रीय दृष्टि से मन्दिर को मस्जिद में परिवर्तित करने का सुगम तरीका भी आबू के मन्दिर का उदाहरण देकर बताया है। इसी प्रकार के परिवर्तन की दर्द भरी कहानी अजमेर क्षेत्र के एक विशाल शिक्षा केन्द्र या जैन मन्दिर की है, जिसे १२वीं शताब्दी में अढ़ाई दिन के झोपड़े में परिवर्तित कर दिया गया है । जैन परम्परानुसार यह एक जैन मन्दिर था ।६ इस स्थान पर खुदाई से प्राप्त एक जिन १. अने०, १३, पृ० १२५ । २. आकियोलाजिकल सर्वे ऑफ कनिंघम, पृ० २६३-६७ । ३. नाजैलेस, क्र० २५४३ । ४. हिस्ट्री ऑफ इण्डिया ऐण्ड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, पृ० २६३-६४ । ५. वही। ६. यह मन्दिर ६६० ई० में वीमदेव काला द्वारा निर्मित बताया जाता है । इसकी नींव भट्टारक विश्वनन्द ने रखी थी। अजमेर के धर्मदास जैन मं० से प्राप्त विवरण के अनुसार भवन ११३२ ई० में पूर्ण हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy