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________________ ३०८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म मारवाड़ क्षेत्र में मण्डोर में प्रतिहार वंशज कक्कुक द्वारा ८६१ ई० में जैन मंदिर निर्मित करवाने का उल्लेख है। वर्तमान में यहां केवल एक ताक में एक तरफ उत्कीर्ण लेख व दूसरी तरफ सिंहारूढ़ देवी की आकृति उत्कीणं है।' मण्डोर में ही नाहड़ राव की गुफा के उत्तर में एक दो मंजिला जैन मन्दिर है, जिसकी आयताकार भुजाओं के तीन तरफ दो मंजिला निर्माण तथा गर्भगृह के सम्मुख सभामण्डप १०वीं शताब्दी के स्तम्भों से निर्मित है। पाली जिले में 'नौलखा" जैन मन्दिर का प्राचीन भाग अब केवल सभा मण्डप ही है, जिसके स्तम्भ १०वीं शताब्दी के पूर्व के हैं। नदसर के प्राचीन जैन मंदिर का सभा मंडप भी १०वीं शताब्दी के पूर्व का है। नदसर के प्राचीन जैन मंदिर का सभा मण्डप भी १०वीं शताब्दी के प्राचीन स्तम्भों से निर्मित है। नाणा का महावीर जैन मन्दिर ९६० ई० के लेखानुसार १०वीं शताब्दी या इससे भी प्राचीन है।" सेवाड़ी का महावीर जैन भन्दिर भी १०वीं शताब्दी का प्रतीत होता है । यद्यपि इसकी केवल दीवारें ही अवशिष्ट हैं फिर भी इसके कलात्मक अलंकरण इसे १०वीं शताब्दी का सिद्ध करते हैं। सिरोही क्षेत्र में भद्रेसर का जैन मन्दिर जिसे लोग 'जग्दूस' कहते हैं, बारम्बार पुननिर्माण के कारण अपनी मूल स्थापत्य शैली को खो चुका है। उठामण के जैन मन्दिर की चतुष्कोणीय निर्मिति इसका काल १०वीं शताब्दी सिद्ध करती है । सम्भवतः बीकानेर क्षेत्र में भी इस काल में मन्दिर निर्मित हुये । तारानगर का मन्दिर ९५२ ई०, रिणी का १०वीं श० तथा नोहर का मन्दिर भी इसी काल का माना जाता है। पल्लू में खोजे गये भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यहाँ प्राचीन जैन मन्दिर था। मेवाड क्षेत्र में इस काल का उल्लेखनीय स्थापत्य का प्रतीक, चित्तौड़ की अल्लट की मीनार है, जो ८६९ ई० में बनवाई गई। आदिनाथ को समर्पित ८० फीट ऊँची इस मीनार की निर्माण शैली ९वीं शताब्दी की ही है। मीनार पर आदिनाथ की कई आकृतियों का उत्कीर्णन है तथा आधार से शिखर तक यह नक्काशी से अलंकृत है ।१० नागदा का १. प्रोरिआसवेस, १९०६-०७, पृ० ३४ । २. वही, पृ० ३१ । ३. वही, १९०७-०८, पृ० ४३ । ४. वही, १९११-१२, पृ० ५३ । ५. वही, १९०७-०८, पृ० ४८-४९ । ६. वही, पृ० ५३। ७. वही, १९०५-०६, पृ० ३९ । ८. गजेटियर-बीकानेर राज्य, पृ० १९५ । ९. आर्ट ऐण्ड आर्किटेक्चर ऑफ बीकानेर स्टेट, पृ० ५८ । १०. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन ऐण्ड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, पृ० २५१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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