________________
३०२ : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं
कुबेर :
जैन कुबेर की प्रतिहारकालीन प्रतिमा मेवाड़ के बाँसी ग्राम से प्राप्त हुई है, जो उदयपुर संग्रहालय में है । समकालीन जैन साहित्य द्वारा भी राजस्थान में यक्ष पूजन स्पष्ट है । हरिभद्र सूरि द्वारा ८वीं शताब्दी में रचित "समराइच्चकहा" में यक्ष धनदेव या कुबेर का उल्लेख है । उद्योतन सूरि द्वारा ७७८ ई० में रचित " कुवलयमाला कहा " "में जैनों द्वारा पूजित कुबेर प्रतिमा का संकेत है । जैन धातु प्रतिमाओं पर कुबेर, अम्बिका व नवग्रह का प्रायः अंकन मिलता है ।
- ११ आचार्यों की मूर्तियाँ :
आचार्यों की पादुकाएं तो प्रायः सभी मन्दिरों में पूज्य रूप में मिलती हैं । कई जैनाचार्यों की मूर्तियां भी राजस्थान में पूजित हैं । मेवाड़ में देलवाड़ा में १४२९ ई० की जिनरत्न सूरि, जिनवर्धन सूरि और द्रोणाचार्य की तथा १४१२ ई० की जिनराज सूरि और जिनवर्धन सूरि आचार्यों की प्रतिमाएँ पाई गई हैं । जयपुर क्षेत्र में मालपुरा में १४वीं शताब्दी की जिनकुशल सूरि की एक ऐसी ही प्रतिमा प्राप्त है । धुलेव के केसरियानाथ मन्दिर में १६९९ ई० की विजय सागर सूरि की प्रतिमा है । आचार्यों की ऐसी प्रतिमाएँ आबू में भी हैं । ये मूर्तियां न तो कलात्मक हैं और न मूल आकृति से साम्य ही दर्शाती हैं ।
१२. यन्त्रों की पूजा :
१०.
जैन मतावलम्बी ताम्र और पीतल के बने हुए विविध यन्त्रों की भी पूजा करते थे । ये यन्त्र वर्गाकार या वृत्ताकार होते थे । आकार के अनुसार बड़े या छोटे तथा यन्त्र के आसपास अभिलेख भी अंकित रहते थे । १३वीं शताब्दी के पश्चात् यन्त्रों की • स्थापनाओं के अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध हैं । सम्भवतः इसके पूर्व भी यह प्रचलन में रहे होंगे । राजस्थान के सभी जैन मन्दिरों में विविध प्रकार के यन्त्र - प्रतिष्ठित देखने को मिलते हैं ।
१३. दानियों व संरक्षकों की मूर्तियाँ :
:
देवी-देवताओं व आचार्यों की मूर्तियाँ तो पूजा के लिए प्रयुक्त होती हैं, किन्तु दानदाताओं की मूर्तियाँ केवल स्मृति-स्वरूप ही बनाई जाती हैं । आबू के आदिनाथ मन्दिर में विमल की अश्वारूढ़ प्रतिमा है, साथ ही दस गजारूढ़ प्रतिमाएँ भी हैं । सम्भवतः यह सब विमल व उसके कुटुम्ब का मन्दिर को जुलूस में जाते समय का चित्रण है । मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा कुछ गजारूढ़ प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया गया है । लूण वसहि मन्दिर में इसके निर्माता वस्तुपाल, तेजपाल की प्रतिमाएँ हैं ।
,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org