________________
३०० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधमं
" पुस्तक, कमंडल आदि लिये हुए है। बयाना के निकट एक खण्डित प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो मोर पर विराजित है । कुछ समय पूर्व ही लाडनूं के दिगम्बर जैन मन्दिर से जैन सरस्वती की एक अन्य भव्य मूर्ति ज्ञात हुई है, इसकी पादपीठिका पर उत्कीर्ण ११६२ ई० के लेखानुसार श्रेष्ठी वासुदेव की पत्नी आशा देवी ने इसकी प्रतिष्ठा अनन्त कीर्ति द्वारा करवाई थी ।" बीकानेर क्षेत्र में पल्लू से प्राप्त सुन्दर सरस्वती प्रतिमा पूर्व मध्यकालीन भारतीय शैली का अद्भुत नमूना है । यह चतुर्भुजी एवं वरद मुद्रा में है ।
३. अम्बिका :
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ से सम्बद्ध आनुषांगिक देवी अम्बिका प्रारम्भ से ही पूज्य रही हैं । सामान्यतः इनके हाथ में एक बालक दिखाई देता है । सादड़ी के एक जैन मन्दिर में १०वीं शताब्दी की अम्बिका की एक पीतल की मूर्ति है, जिसके बायें हाथ में बच्चा व दायें हाथ में आम्रलुम्बि है । मोरखानों में सुसाणी मन्दिर में अम्बिका की एक सिंहारूढ़ १२वीं शताब्दी की प्रतिमा है । यह मूर्ति शिल्प कला का उत्कृष्ट नमूना है, जो अम्बिका की जैन प्रतिमाओं से काफी साम्य रखता है । बघेरा के जैन मन्दिर में १२वीं शताब्दी की अम्बिका की प्रस्तर मूर्ति है । नरैना के जैन मन्दिर में सिंहारूढ़ देवी की तीन जैन प्रतिमाएँ कलात्मक अभिव्यक्ति लिये हुये हैं । जयपुर में लूणकरणजी के मंदिर में १४वीं शताब्दी की अम्बिका की सुन्दर सिंहारूढ़ धातु प्रतिमा है ।
४. पद्मावती :
पद्मावती पार्श्वनाथ की आनुषांगिक यक्षिणी है । बघेरा में १२वीं शताब्दी की पद्मावती की प्रस्तर प्रतिमाएँ प्राप्त हैं । जयपुर में सिरमौरियाजी के मन्दिर में १५९४ ई० की एक प्रतिमा है, जिसके दोनों हाथों में एक-एक बच्चा है व ऊपर पार्श्वनाथ का बिम्ब अंकित है । लूणकरणजी के मन्दिर में पद्मावती की शान्त एवं सौम्य स्वरूप वाली चतुर्भुजी प्रस्तर प्रतिमा है । ५. अन्य यक्षियाँ :
आनुषांगिक यक्षिणियों मन्दिर में "ब्रह्माणी"
राजस्थान के विभिन्न जैन मन्दिरों में अन्य की प्रतिमाएँ भी देखने को मिलती हैं । बघेरा के की एक प्रस्तर प्रतिमा है । जयपुर के लूणकरणजी के देवी की प्रतिमा है, जो अष्टभुजी है । इसके बाँये चार तथा कुल्हाड़ी व दाहिने हाथों में शंख, चक्र आदि हैं । सम्भवतः यह तान्त्रिक देवी मूर्ति,
मन्दिर में भैंसे पर आसीन एक हाथों में तलवार, धनुष, तीर
महिषासुर मर्दिनी की है ।
१. वीनिस्मा, पृ० २-३३ ।
Jain Education International
तीर्थकरों की महावीर जैन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org