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________________ साधन स्रोत : ९ लिपियों की कई-कई प्रतियां जन-औदार्य की भी सूचक हैं । विजयसिंहसूरि द्वारा ११३४ ई० में विरचित "उपदेशमाला वृत्ति" एवं चन्द्रसूरि द्वारा ११३६ ई० में विरचित "मुनिसुव्रतचरित्र" की प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि पृथ्वीराज प्रथम ने रणथम्भौर के जैन मन्दिरों पर स्वर्ण कलश चढ़ाये थे। “पंचाशक वृत्ति" को एक प्रति से ही हमें ज्ञात होता है कि कुमारपाल ने ११५० ई० के आसपास पाली को विजित किया था। आशाधर रचित "धर्मामृत टीका" की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि आशाधर ने मोहम्मद गोरी के आक्रमण के कारण माण्डलगढ़ छोड़कर धारा नगरी को प्रस्थान किया था। इसी प्रकार की जानकारी १२७८ ई० में रचित "जिनदत्त चरित्र" की प्रशस्ति से कवि लक्ष्मण के बारे में त्रिभुवनगिरी को छोड़ने के सन्दर्भ में मिलती है। समय सुन्दर को "अष्टलक्ष प्रशस्ति" से जिनभद्र सूरि द्वारा जैसलमेर, जालौर, नागौर आदि में ज्ञान भण्डारों की स्थापना की जानकारी मिलती है। इनके द्वारा चित्तौड़, मंडोर, तलवाड़ा आदि में प्रतिमाओं एवं मन्दिरों के प्रतिष्ठा-समारोह सम्पन्न करवाने की जानकारी भी १४४० ई० की "जैसलमेर जिनालय प्रशस्ति" से ज्ञात होती है। १४६१ ई० में रचित "वर्धमान चरित्र" की एकमात्र प्रति की प्रशस्ति से खंडेला के शासक उदयकरण के बारे में ज्ञात होता है । तिजारा और नागौर के खानजादा और खान शासकों के काल में रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियां उनके इतिहास के पुननिर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं । १४९० ई० में रचित "आत्मप्रबोधन" की प्रशस्ति बयाना के बारे में तथा १५५१ ई० में रचित "होलि रेणुका चरित्र" की प्रशस्ति, सांभर व रणथम्भौर के इतिहास निर्माण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं ।° आमेर में १७१२ ई० में रचित "हरिवंश पुराण" की प्रशस्ति यहां के किले, बाजार, जनता आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रदान करती है ।११४०७ ई० में मलयगिरि रचित "सप्तति टीका" की प्रशस्ति के श्लोक संख्या १२ में महाराणा १. गाओसि, जि० ७६, पृ० ३१२-३१६ । २. वही। ३. जैसाओइ, १० ३४४ । ४. अने, जि० ८, पृ० ४०० । ५. जैसप्र, जि० १६, पृ० १६ । ६. वही। ७. इस ग्रन्थ की प्रति ब्यावर के शास्त्र भण्डार में है। ८. एसिटारा, पृ० १५ । ९. इस ग्रन्थ को प्रति बयाना के शास्त्र भण्डार में है। १०. जैनप्रस, संख्या ४५ । ११. एसिटारा, पृ० १५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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