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जैन कला : २९५
सिर पर ढाई फीट का दो हाथियों पर टिका हआ छत्र है, पाई गई है। कोटा क्षेत्र के शेरगढ़ में ११वीं शताब्दी की एक राजपूत सरदार द्वारा बनवाई गई तीन विशाल प्रतिमाएँ पाई गई हैं ।२ १२वीं शताब्दी की कुछ प्रतिमाएँ सांगानेर, बघेरा, मारोठ, सिरोही और चित्तौड़ क्षेत्रों में पाई गई हैं। (ख) धातु प्रतिमाएँ:
जैन मतियों के कलात्मक अध्ययन की दृष्टि से धातु मूर्तियां बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। धातु मूर्तियों में जितना वैविध्य है, उतना पाषाण मूर्तियों में नहीं। धातु मूर्तियाँ लाने, ले जाने में आसान, कम लागत की व अधिक समय तक सुरक्षित रखी जा सकती हैं । इन पर अभिलेख भी आसानी से खोदे जा सकते हैं । अकबर द्वारा सम्मानित महाकवि समयसुन्दर ने १६०५ ई० में रचित "घंघाणी तीर्थ स्तवन" धुंधला तालाब के निकट से ६५ प्रतिमाओं का प्राप्त होना बताया है और यह भी उल्लेख किया है कि सम्प्रति ने आर्य सुहस्ती से वीर संवत् २०३ में स्वर्ण प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई थी। ये मूर्तियाँ प्राप्त नहीं है, किन्तु ८वीं शताब्दी से पूर्व धातु मूर्तियों का अस्तित्व में होना सिद्ध होता है । धातु मूर्तियों में प्राचीनतम दो त्रितीथियाँ हैं, जो पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्तियां हैं, इनमें से एक पर ६६९ ई० व दूसरी पर ६९९ ई० के लेख हैं। ये धातु प्रतिमाएँ पश्चिमी भारत की सर्व प्राचीन धातु प्रतिमाएँ हैं। जैन संरक्षण में अज्ञात कलाकारों ने धातु मिश्रण, ढलाई एवं बिम्ब सन्तुलन में अपूर्व सौन्दर्य बोध का परिचय दिया है। इनमें मध्य भाग में पद्मासनस्थ मूलनायक बिम्ब, उभयपक्ष में दो खड़े जिन, दो विद्यादेवियाँ, दो बैठे हुये यक्ष-यक्षिणी, ऊपर गजाभिषेक व नीचे पीठ पर एक रत्नजड़ित सिंहासन है, जिसमें सिंह एवं हाथियों का निदर्शन तथा नवग्रहों का स्वरूप चित्रण है। इस प्रकार की शैली १८वीं शताब्दी तक की धातु प्रतिमाओं का प्रतिमान बनी। ये प्रतिमाएं पंच धातु की ढली हुई हैं, इनमें चांदी एवं ताँबे की जड़ाई की अनुपम छटा है। ___ बसन्तगढ़ से प्राप्त ६८७ ई० की ४ फुट ऊँची, दो खड्गासन सवस्त्र प्रतिमाएं धातु मूर्तिकला में नया अध्याय जोड़ती है। इनमें गांधार शैली की बुद्ध प्रतिमाओं की तरह का पहनावा दिखाया गया है । इन प्रतिमाओं से पूर्ववर्ती, वल्लभी से प्राप्त पाँच सवस्त्र धातु प्रतिमाएँ, बम्बई के प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में सुरक्षित है, पर इनमें धोती का वैसा स्पष्ट प्रदर्शन नहीं हो पाया है, जैसा कि इन दो प्रतिमाओं में। मूर्तियों पर लेख है कि साक्षात् ब्रह्मा की तरह सर्व प्रकार के रूपों को बनाने वाले शिल्पी शिवनाग ने ये जिन
१. आसरि, २०, पृ० १२५ । २. कोटा राज्य का इतिहास, पृ० १२५ । ३. असावे, पृ० ४२।
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