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२९४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
बाहर विद्यमान है। इसके अतिरिक्त आहड़ (उदयपुर), ओसिया (जोधपुर) एवं सेवाड़ी (पाली) के मन्दिरों में भी इसी प्रकार की १०वीं-११वीं शताब्दी की मूर्तियां विद्यमान हैं। ओसिया के महावीर मन्दिर में जीवन्त स्वामी की तीन खण्डित प्रतिमाएँ मिली हैं, जिनमें से एक पर ११वीं शताब्दी का लेख है। महावीर की एक सुन्दर प्रतिमा का निर्माण परमार कृष्णराज के राजत्व में ९६७ ई० में वेष्ठिक कुल के वर्द्धमान नामक व्यक्ति ने वरकाणा में किया था। प्रतिमा का शिल्पकार नरादित्य था । अन्य तीर्थंकरों की भी अनेक प्रतिमाएँ विभिन्न स्थानों पर निर्मित हई। पिलानी के निकट नरहद (नरभट) से प्राप्त कायोत्सर्ग मुद्रा में सुमतिनाथ तथा नेमिनाथ की भव्य प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं, जिनकी पादपीठिका पर चक्र व शंख उत्कीर्ण हैं। ये गुप्तोत्तरयुगीन मूर्तियाँ हैं ।
जैन प्रतिमाएँ अपनी विशालता के लिये भी प्रसिद्ध रहीं। अलवर क्षेत्र में पारानगर के निकट जैन मन्दिर के भग्नावशेषों से पार्श्वनाथ की १६ फीट ऊँची प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो "नवगजा" नाम से प्रसिद्ध है और ९वीं शताब्दी की अनुपम कला मूर्ति है । भरतपुर संग्रहालय में अनेक लेख युक्त जैन प्रतिमाएं हैं, जिनमें पार्श्वनाथ की बद्देना से प्राप्त १०२० ई० की, भुसावर से प्राप्त नेमिनाथ की १०५२ ई० की व १०५३ ई० की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। __ नाँदिया के जैन मन्दिर में महावीर की मूर्ति अपने परिकर के कलात्मक परिवेश तथा अद्भुत रूप से खुदे हये तोरणों के कारण मूर्तिकला का श्रेष्ठ नमूना है।" नरैना में पाई गई १०वीं शताब्दी की जिन प्रतिमाएँ अभिलेख सहित हैं। सहस्त्रकूट चैत्यालय की एक उत्कृष्ट प्रतिमा है, जो वर्गाकार है और इसके प्रत्येक कोने में २७ के समूह में कुल १०८ प्रतिमाएं हैं।६ अलवर प्रदेश में ११वीं शताब्दी की २४ फीट ऊँची विशाल जैन प्रतिमा भंगुर नामक ग्राम से खोजी गई है। अलवर में ही बहादुरपुर में बघोला नदी के तट के निकट एक वट वृक्ष के नीचे खड्गासन मुद्रा में तीन नग्न आकृतियाँ पाई गई हैं। अलवर में ही पारानगर में १३ फीट ९ इंच ऊँची एक विशाल प्रतिमा, जिसके
१. जैसरा, पृ० १९० । २. मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी, जैसिभा, १९७४ । ३. वीनिस्मा, पृ० २-३३ । ४. वही, पृ० २-३० । ५. असावे, पृ० ४१। ६. जैइरा, पृ० १३२ । ७. हिस्ट्री ऑफ इंडियन ऐंड ईस्टर्न आर्किटेक्चर, पृ० २५० । ८. आसरि, २०, पृ० ११५ ।
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