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२९२ : मध्यकालीन राजस्थान में अनधर्म
चिल
बल
गज
अश्व बंदर
चकवा
प्रियंगु
विजय
नद्यावर्त अर्द्धचन्द्र मकर स्वस्तिक गेंडा
ब्रह्म
क्र०सं० तीर्थकर नाम
१. ऋषभनाथ २. अजितनाथ ३. संभवनाथ ४. अभिनन्दन ५. सुमतिनाथ ६. पद्मप्रभु ७. सुपार्श्वनाथ ८. चन्द्रप्रभु ९. पुष्पदंत १०. शीतलनाथ ११. श्रेयांसनाथ १२. वासुपूज्य १३. विमलनाथ १४. अनन्तनाथ १५. धर्मनाथ १६. शांतिनाथ १७. कुंथुनाथ १८. अरहनाथ १९. मल्लिनाथ २०. मुनि सुव्रत नाथ २१. नमिनाथ २२. नेमिनाथ २३. पार्श्वनाथ २४. महावीर
भैंसा
चैत्यवृक्ष न्यग्रोध गोवदन सप्तपर्ण महायक्ष शाल त्रिमुख सरल
यक्षेश्वर प्रियंगु तुम्बुख
मातंग शिरीष नागवृक्ष अजित अक्ष (बहेड़ा) धूलि ब्रह्मेश्वर पलाश कुमार
षणमुख पाटल पाताल
किन्नर दधिपर्ण किंपुरुष नन्दी
गरुड़ तिलक
गंधर्व आम्र कुबेर ककेली
वरुण चम्पक भृकुटि बकुल गोमेध मेष शृंग पार्श्व
मातंग शाल
गुह्यक
तंदू
यक्षिणी चक्रेश्वरी रोहिणी प्रज्ञाप्ति वज्र शृंखला वज्रांकुशा अप्रति चक्रेश्वरी पुरुष दत्ता मनोवेगा काली ज्वाला मालिनी महाकाली गौरी गांधारी वैराटी सोलसा अनन्तमती मानसी महामानसी जया विजया अपराजिता बहुरूपिणी कृष्माण्डो पद्मा सिद्धायिनी
पीपल
शूकर सेही वज्र हरिण छाण तगरकुसुम कलश कूर्म उत्पल शंख सर्प सिंह
धव
प्रतिमाओं के प्रभावलय भी देखने को मिलते हैं। दो तीर्थंकरों की मूर्तियाँ विशेष लक्षण युक्त पाई जाती हैं, जैसे-आदिनाथ के केश कंधों तक बिखरे हुये और पार्श्वनाथ की सप्तफणी, नवफणी या सहस्त्रफणी मूर्तियाँ । जिन-मूर्तियाँ विविध रंगों के पाषाण, काष्ठ व धातु की ढलाई में स्वर्ण, रजत, ताम्र, कांस्य, पीतल आदि की मिलती हैं । पंच धातु, सर्व धातु के अतिरिक्त अष्ट धातु प्रतिमाएँ भी निर्मित होती थीं। हीरे व पन्ने की मूर्तियाँ भी पाई जाती हैं, किन्तु बहुमूल्य होने के कारण सार्वजनिक नहीं होती हैं । धातु प्रतिमाएँ चार प्रकार की हो सकती हैं
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