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२८४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
एक साय बड़े वस्त्र पट्ट भी बनते थे, जिनमें पहाड़ी पर चढ़ते तीर्थयात्री, विश्राम करते हुये, नृत्यरत, पूजन करते हुये या व्यवस्था आदि जुटाते हुये चित्रित हैं। विभिन्न वाद्य यंत्र व चवरी धारक भी चित्रित हैं ।
__ जयपुर में खरतरगच्छीय ज्ञान भण्डार में अगरचंद नाहटा द्वारा, शत्रुजय तीर्थ के ऐतिहासिक चित्रण का १६१९ ई० का जैसलमेर में निर्मित, एक वस्त्र पट्ट खोजा गया है, जो २३ इंच चौड़ा व २५ फुट लम्बा लिपटा हुआ है । इसमें पालीताणा नगर पहुँचने से लेकर गिरिराज की सम्पूर्ण यात्रा कर सिद्धवट तक पहुँचने का तत्कालीन यात्रा-मार्ग चित्रित है । सर्वप्रथम, वस्त्र के नीचे दाहिनी ओर भैसे पर पानी की पखाली लिये वापसी को जाते हुये, वापी पर पनिहारिने, वापी तट पर मयूर व दो बगुले, ताड़ व आम्र वृक्ष, वापी के सामने न्यायालय भवन, जिसमें अन्दर काजी, कुरान शरीफ व सुराही, कोतवाल, चोर व दो सिपाही, घोड़ा व साईस-सफेद पृष्ठभूमि में चित्रित हैं । लाल रंग की पृष्ठभूमि पर दाहिनी ओर हाथी व वाम पार्श्व में अश्वारोही, खेलते हुये तीन स्त्री व एक पुरुष, बाघ व घड़ी सहित जादुगर, दरोगा, अश्व परिचारक, मेड़ी-ऊपर केशों में बाँदी से कंघी करवाती औरत, तीसरी मंजिल पर एक युगल, नगर, प्राचीन परकोटा, बुर्ज, गृहस्थ का घर, गायें, मीनारें, कुआँ आदि चित्रित हैं । दाहिनी ओर हाट, एक उपाश्रय व वृक्ष आदि हैं। उपाश्रय में जिनराज सूरि व श्रावकादि हैं । आगे ललित सरोवर, संघपति व श्रावकों के विविध कार्य-कलाप हैं। इससे आगे यतियों व साधुओं का डेरा, मारवाड़ी महिलाएँ तथा गुजराती महिलाएं चित्रित हैं । आगे संघ का गतिमान दृश्य है। आगे छत्री में चरण पादुका व पास में हिंगुलाज माता की मूर्ति, तदनन्तर कठिन चढ़ाई का दृश्य, फिर कोट व दरवाजा तथा अन्दर वापी व मन्दिर चित्रित हैं। मन्दिर में जिनेश्वर की पाँच प्रतिमाएँ व जिनराज सूरि द्वारा प्रतिष्ठा किया जाना बताया गया है। दाहिनी ओर अजितनाथ व शान्तिनाथ के मन्दिर, आगे पाँच पाण्डव मन्दिर, फिर शिखर से उतरने पर अमरदत्त साधु व श्रावक हैं, अहबादनाथ प्रतिमा, कोडियाल कुंड, चामुण्ड मन्दिर, चौकीदार, दरवाजा व फिर विमल वसहि के शिखरादि हैं। चक्रेश्वरी मन्दिर, खरतर वसहि, खरतर उपासरा, दिगम्बर जैन मन्दिर, हुँबड़ देहरी भी चित्रित हैं । इसके बाद विपान्वसहि का तीसरा कोट पुण्डरीक स्वामी, पउसाल, भीम कुण्ड, सिद्ध शिला आदि का नामांकित चित्रण है।
मंत्र-तंत्र आदि के पट्टों की तरह भौगोलिक वस्त्र पट्ट भी निरन्तर बनते रहे हैं, जिनमें जम्बूद्वीप, अढ़ाईद्वीप, द्वीपसमुद्रों, लोकतत्त्व तथा १४ राजु लोक के मनुष्याकार पट्ट विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनमें से कई पट्ट तो बहुत बड़े-बड़े बनाये गये, १. नाहटा-राजस्थान वैभव, पृ० १२१ । २. आकृति ८०, पृ० २०-२४ ।
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