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जैन कला : २८५
जिनमें देवलोक, मनुष्य लोक, नकलोक तथा द्वीप समुद्रों के साथ-साथ अनेक पशु-पक्षियों, मच्छी, मगर आदि जलचरों, देवताओं और देव विमानों आदि के छोटे-छोटे सैकड़ों चित्र पाये जाते हैं । इस तरह से जैन भौगोलिक मान्यताओं को जानने के लिये ये सचित्र एलबम से हैं। बीकानेर के बड़े ज्ञानभण्डार तथा अन्य राजस्थान के जैन भण्डारों में सचित्र वस्त्र पट्ट काफी संख्या में प्राप्त हैं। इनमें विषय वस्तु एवं रंगों का वैविध्य है । दिगम्बर समाज में ऐसे वस्त्र पट्टों को "मांडणा'' कहते है, जो आज भी अनेक प्रकार के बनते हैं । इनका पूजा विधान भी प्रचलित है । पाटौदी जैन मन्दिर, जयपुर के शास्त्र भण्डार में एक वस्त्र पट्ट पर चित्रित है कि किस प्रकार राजपूत शासक ब्रिटेन वासियों पर निर्भर हो गये। (ख-४) काष्ठ फलक :
इस काल के काष्ठ फलक भी राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध नहीं हैं। (ख-५) सचित्र विज्ञप्ति पत्र :
सचित्र विज्ञप्ति पत्रों में जहाँगीर के चित्रकार शालिवाहन द्वारा चित्रित विजयसेन सूरि का विज्ञप्ति पत्र सबसे प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण है। बीकानेर के बड़े ज्ञान भण्डार में, बीकानेर का विज्ञप्ति पत्र, ९६ फीट लम्बा और ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर, चित्रकला का उत्कृष्ट नमूना है। इस विज्ञप्ति पत्र ने बीकानेर के भाण्डासर जी के मन्दिर में भित्ति चित्र का रूप धारण कर लिया है, क्योंकि वह इसी के आधार पर चित्रित किया था।२ बीकानेर का एक दूसरा सचित्र विज्ञप्ति पत्र भी बीकानेर के बड़े ज्ञान भण्डार में है, जो १७४४ ई० का है। यह विज्ञप्ति पत्र मथेण अखय राय दासोत द्वारा चित्रित और राधनपुर को प्रेषित किया गया था । सिरोही से जिनभक्ति सूरि को बीकानेर भेजे गये दो सचित्र विज्ञप्ति पत्र प्राप्त हैं, जिसमें से एक बड़े ज्ञान भण्डार में व दूसरा श्री पूज्यजी के संग्रह में है। महाराणा भीमसिंह के समय का उदयपुर का सचित्र विज्ञप्ति पत्र भी प्राप्त है । मेड़ता से भावनगर, जैनाचार्य विजय जिनेन्द्र सूरि को प्रेषित विज्ञप्ति पत्र भी सचित्र है।"
नागौर संघ द्वारा सोजत में विजय जिनेन्द्र सूरि को १७८५ ई० में प्रेषित विज्ञप्ति पत्र "आशुतोष म्यूजियम" में है। बड़ौदा सरकार के पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्रकाशित
१. आकृति ८०, पृ० २१ । २. वही। ३. वही। ४. वही। ५. आकृति ८०, पृ० २१ ।
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