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________________ २८२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म इन विभिन्न प्रतियों में समकालीन, सामाजिक व धार्मिक दशाओं का भलीभाँति निरूपण किया गया है। इनमें साधु-साध्वियों, दिगम्बर मुनि, जुलूस, चर्चा, पशु वध की परम्परा, अन्तः प्रासादों के आमोद-प्रमोद, विभिन्न पशु-पक्षी, वृक्ष आदि जीवन्त रूप से चित्रित हैं । हस्तलिखित ग्रन्थों की तीन प्रतियाँ ''ऋषि मंडल पूजा", "अष्टाह्निका जयमाला" और "निर्वाण मण्डल पूजा" जयपुर के एक जैन मन्दिर में कलात्मक आवरण में वेष्ठित पाई गई हैं । सीमा अलंकरण की दृष्टि से ये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें फूल-पत्तियों के कई अलंकरण हैं, कई रेखागणितीय आकृतियाँ व गलियों के सुन्दर चित्रण भी हैं। नागौर के शास्त्र भण्डार में १६७७ ई० की "गोम्मटसार", "कालिकाचार्य कथा" तथा "गीता", ये तीन सचित्र कृतियाँ उपलब्ध हैं। श्री महावीरजी के शास्त्र भण्डार में १८वीं शताब्दी की "त्रिलोकसार" व जयपुर के एक जैन मन्दिर में इसी शताब्दी की "त्रैलोक्य नाम दीपिका' की सचित्र प्रतियाँ हैं । "त्रैलोक्य नाम दीपिका" में १० चित्र है, जिनमें मध्यलोक, मानस्तम्भ, सभामण्डप, जम्बूद्वीप, कुण्डलद्वीप, नन्दीश्वर द्वीप, पुष्कर दीप, सुमेरु पर्वत, जम्बू वृक्ष तथा कमल के ऊपर विराजमान तीर्थकर प्रदर्शित हैं। जयपुर के निकट जोबनेर के मन्दिर में १८वीं शताब्दी की "संग्रहणी सूत्र" की वस्त्र में बंधी एक प्रति है । वेष्टन के वस्त्र पर तिनकों की कढ़ाई से १६ स्वप्नों का अतीव सुन्दर चित्रण है । ग्रन्थ में उन्नीस चित्र हैं, जिनमें स्वर्ण पटल, नन्दीश्वर द्वीप, त्रैलोक्य पुरुष, तीर्थकर, सप्तग्रह, नारकीय दृश्य, इन्द्रसेना, यक्षाकृतियाँ, जम्बू द्वीप, लवण समुद्र, इन्द्र सभा, इन्द्रजन्मोत्सव, स्वर्ग के विमान आदि सुन्दर ढंग से चित्रित किये गये हैं । शतलेश्याओं की तुलना आम्रवृक्ष से की गई है। जैन शास्त्रोक्त संसारी आत्मा के ६ रंगकृष्ण, नील, कपोत, पद्म, शुक्ल और पीत आदि का सुन्दर प्रतीकात्मक चित्रण व निरूपण है। इनके अतिरिक्त लूणकरण जी पंड्या के मन्दिर में ज्वाला मालिनी, भैरव, पद्मावती, महा मृत्युञ्जय यंत्र आदि की तांत्रिक सचित्र पोथियाँ भी हैं। कुछ चित्र पद्मप्रभु, कालिकादेवी, नरसिंहावतार, पद्मावती और गणेश के हैं । कलिकुण्ड पाव यंत्र, सूर्य प्रताप यंत्र, तीजा पौहूत यंत्र, वज्रपंजर यंत्र, चतुःषष्ठ योगिनी यंत्र आदि के भी चित्र हैं । इस प्रकार के चित्र झालरापाटन और ब्यावर में भी हैं। अजमेर के जैन शास्त्र भण्डार में १८वीं शताब्दी की बाहु कवि रचित "आदित्यवार कथा" की सचित्र, हिन्दी में लिखित कृति है, जिसमें २५ से अधिक चित्र पूर्णतः मुगल कला से प्रभावित हैं । १७८९ ई० में रचित एक गुटका, बन्दी के आदिनाथ मन्दिर के ग्रन्थ भण्डार में था, जिसमें ७२ चित्र मुगल कला से प्रभावित, निर्मित हैं। मुनि समयसुन्दर सूरि ने १७वीं शताब्दी में "अर्थ रत्नावली" नामक अद्भुत ग्रन्थ की रचना की, जो उन्होंने अकबर को भेंट में दिया। इस ग्रन्थ में अकबर युगीन भित्ति चित्रों तथा दूसरे प्रकार के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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