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________________ जैन तीर्थ : २८१ थी, किन्तु अब इस पर सफेदी पोत दी गई है । केवल मध्य का एक फूल उन चित्रित रंगों की यादगार का साक्षी है । " सोम-सौभाग्य-काव्य" में आये उल्लेख से संकेत मिलता है कि इस काल में श्रेष्ठियों के आवास भित्ति चित्रों से समलंकृत रहते थे । २ बून्दी के ऋषभदेव जैन मन्दिर की दीवारों पर बून्दी शैली के १७वीं शताब्दी के सुन्दर चित्र हैं । एक चित्र में नेमिनाथ के पंच कल्याणकों का वर्णन है । उनकी बारात का सुन्दर दृश्य, हाथी, घोड़े, रथ आदि हैं । बाड़े में चीत्कार करते हुये पशु, बारात का द्वाराचार करती हुई स्त्रियाँ, मस्तक पर स्वर्ण कलश लिये हुये हैं । इसमें नेमिनाथ व कृष्ण दोनों का सुन्दर अंकन है । नेमिनाथ शंख पूरते हुये एवं धनुष उठाये हुये हैं । दूसरे चित्र में नगर के विविध प्रकार के दृश्य, बून्दी राव का दरबार, दरबारी आदि चित्रित हैं । ये चित्र रंग संयोजन, निरूपण आदि दृष्टियों से दुर्गं स्थित चित्रशाला के भित्ति चित्रों के समकालीन हैं । ( ख ) लघु चित्रशैली : ( ख - १ ) सचित्र ताड़पत्रीय ग्रन्थ : १७वीं एवं १८वीं शताब्दी में कागज के बहुविध प्रचलन एवं मुद्रण कला के प्रसार के कारण ताड़पत्रीय ग्रन्थों का लेखन एवं चित्रण नहीं हुआ । ( ख - २ ) सचित्र कागज ग्रन्थ : जयपुर के तेरापंथी जैन मंदिर के शास्त्र भण्डार में आचार्य जिनसेन विरचित " आदि पुराण" की सचित्र प्रति है, जो १६०६ ई० में रची गई । इसमें २०० चित्र हैं। जयपुर, मौजमाबाद, नागौर आदि भण्डारों में " यशोधर चरित्र" की सचित्र प्रतियाँ हैं । मौजमाबाद की प्रतियाँ पुष्पदन्त और रइधू की अपभ्रंश कृति की प्रतिलिपियाँ हैं, जबकि अन्य दो भण्डारों में सकल कीर्ति के ग्रन्थ की प्रतिलिपियाँ हैं । पं० लूणकरण जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में १७३१ ई० की " यशोधर चरित्र" की सचित्र प्रति है, जो लूणकरण ने ही चित्रित करवाई थी इसमें ३७ चित्र हैं, जिनमें से कुछ सम्पूर्ण पृष्ठ के आकार के और कुछ आधे पृष्ठ में निर्मित हैं । जयपुर के पटौदी जैन मन्दिर में । भी " यशोधर चरित्र" की २७ चित्रों वाली प्रति है, जो १७०६ ई० में अहमदाबाव में राजनगर में तैयार हुई थी । मौजमाबाद में इस ग्रन्थ की तीन हैं। पहली प्रति में ६५ चित्र हैं, दूसरी में ७४ व तीसरी प्रति में ब्यावर के "ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन में, अहमदाबाद में राजपुर में १७१२ ई० में प्रतिलिपि को गई ७३ चित्रों वाली " यशोधर चरित्र" की प्रति है । १. असावं, पृ० १९३ । -२. सोमसौभाग्य काव्य, पृ० ८३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only सचित्र प्रतियाँ ७५ चित्र हैं । www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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