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२८० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
(ख-४) काष्ठ फलक:
मध्यकाल के काष्ठ फलक राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों में उपलब्ध नहीं हैं । (ख-५) सचित्र विज्ञप्ति पत्र :
मध्यकाल के केवल अचित्रित विज्ञप्ति पत्र प्राप्त होते हैं । (३) उत्तर मध्यकाल : [क] भित्ति चित्र:
१७वीं एवं १८वीं शताब्दी के भित्ति चित्र अनेकों स्थानों पर सुरक्षित हैं। नाडौल के एक जैन मन्दिर में १६०५ ई० में निर्मित एक भित्ति चित्र उपलब्ध है।' बीकानेर के भांडासर जी और महावीर जी मन्दिर में भी भित्ति चित्र हैं। राजस्थान के अनेक जैन मन्दिरों, उपाश्रयों एवं श्रेष्ठियों की हवेलियों में इस काल के चित्र विद्यमान है, किन्तु बहुत से भित्ति चित्र खराब हो गये और उन पर पुताई करके नये चित्र भी बना दिये गये । उन चित्रों में तीर्थकर का जन्माभिषेक, समवसरण, रथयात्रा, तीर्थों और जैन महापुरुषों के जीवन सम्बन्धी सैकड़ों चित्र पाये जाते हैं। इनमें से कुछ ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्त्व के हैं। इनमें गौड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर, सम्मेद शिखर, आचार्यों, यतियों, भक्त श्रावक आदि के चित्र हैं ।३ बीकानेर के भांडासर मन्दिर के गुम्बज और नीचे की गोलाई में बीकानेर के विज्ञप्ति पत्र आदि अनेक महत्त्वपूर्ण चित्र हैं। बोरों की सेरी के महावीर मन्दिर में भगवान के २७ भव और अनेक जैन कथानकों के चित्रों से तीनों ओर की दीवारें भरी हुई हैं । इसी प्रकार दादा-बाड़ियों में भी जिनदास सूरि, जिन कुशल सूरि, जिनचन्द्र सरि आदि के जीवन सम्बन्धी अनेकों चित्र दीवारों पर काफी संख्या में बनाये जाते रहे।५ बीकानेर के सबसे प्राचीन चिन्तामणि मन्दिर की मती में दादाजी की देरी, उदरायसर की दादाबाड़ी आदि के भी कई भित्ति चित्र है ।। राजस्थान की अनेकों दादाबाड़ियों में दादाजी के जीवन सम्बन्धी चित्र हैं । १६५० ई० के लगभग बनी सिरोही के चौमुखा मंदिर की छत बहुत सुन्दर ढंग से चित्रित की गई
१. राजस्थान की लघुचित्र शैलियाँ, पृ० ४७ । २. नाहटा, राजस्थान वैभव, पृ० १२२ । ३. वही। ४. वही। ५. वही ६. वही। ७. वही।
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