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________________ जेन कला : २७९ महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं । साथ ही राजस्थानी चित्रकला के इतिहास की दृष्टि से, पश्चिम भारतीय कला या जैन कला में १६वीं शताब्दी में आये मोड़ को भी प्रदर्शित करते हैं ।" फलोधी में फूलचन्द के संग्रह में १४१६ ई० की "कालका कथा" की एक सचित्र प्रति है । बड़ौदा में हंसविजय मुनि के पास, राजस्थान में यवनपुर में १४६८ ई० में स्वर्णिम स्याही से लिखी " कल्पसूत्र " की एक सचित्र प्रति है, इसमें ८ सुन्दर चित्र तथा ७४ सुन्दर सीमांकन हैं । ( ख - ३ ) सचित्र वस्त्र पट्ट : १४वीं शताब्दी से ही वस्त्रांकित ग्रन्थ एवं चित्र मिलना प्रारम्भ हो जाते हैं । सबसे प्राचीन सचित्र वस्त्र पट्ट र पार्श्वनाथ यन्त्र वाला, १४वीं शताब्दी के उतराद्ध का है, क्योंकि वस्त्रपट्ट के नीचे जो आचार्य का चित्र है, उसमें " तरुणप्रभ सूरि" लिखा हुआ है, जिनका समय १३५० ई० के आसपास का है । इस वस्त्र पट्ट के ऊपर दोनों ओर पार्श्वनाथ और पद्मावती देवी के सुन्दर चित्र हैं । है । उसके बाहर गोलाकार में मंत्र लिखे हैं और नीचे आचार्य का चित्र है । बीच में पार्श्वनाथ का चित्र एक अन्य वस्त्रपट्ट " चिन्तामणि यंत्र" है, जो साढ़े उन्नीस इंच लम्बा और साढ़े सात इंच चौड़ा है, इसमें तारण प्रभाचार्य का भी चित्र अंकित है । अतः सम्भवतः यह उनके जीवन काल में ही बना होगा । इसमें सकेन्द्रीय तांत्रिक वृतों के बीच सिंहासन पर पार्श्वनाथ बैठे हैं । आसपास चँवरी लिये हुये धरणेन्द्र तथा पद्मावती हैं । ऊपर दाहिने तरफ पार्श्वनाथ का यक्ष व दाहिने तरफ देवी वैरोल्या चित्रित हैं । इनके बीच में गन्धर्व बने हुये हैं । नीचे, दाहिनी तरफ तारण प्रभाचार्य दो शिष्यों के साथ तथा बाँयीं तरफ दो अन्य शिष्य हैं। वृत के बाहर दो चंवरी धारक हैं । १५वीं शताब्दी का ही एक अन्य वस्त्र पट्ट का छापा भी है। यह बहुमूल्य सचित्र है । बहुत से मंत्राक्षर वाले सचित्र पट्ट और यंत्र, विधि सहित पूजित रहे हैं । अपभ्रंश शैली में चित्रित है ।" एक बड़े वस्त्र पट्ट लन्दन के म्यूजियम में प्रदर्शित १. जैइरा, पृ० १४३ । २. शंकरदान नाहटा कला भवन में संग्रहीत है । ३. नाहटा - राजस्थान वैभव, पृ० १२१ । ४. यह बीकानेर के नाहटा कला भवन में है । ५. अगरचन्द नाहटा के बीकानेर संग्रहालय में । ६. वहीं पर । ७. नाहटा - राजस्थान वैभव, पृ० १२१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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