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२७८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म (ख-२) सचित्र कागज ग्रंथ :
चित्र निर्माण के लिये कागज का प्रयोग १४वीं शताब्दी के बाद से प्रारम्भ हुआ । इससे चित्रकला की तकनीक में कुछ परिवर्तन हुआ। ऐसी प्रतियों में मेवाड़ में चित्रित "सुपासनाथचरि\" की प्रति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। १५वीं शताब्दी की “पाण्डव चरित्र" की एक सचित्र प्रति जोधपुर के केसरियानाथ भण्डार में है। जैसलमेर भण्डार में "कालिकाचार्य कथा" की सचित्र हस्तलिखित प्रति की चित्रकला असाधारण रूप से सुन्दर है। इसी भण्डार में रजत-स्याही से लिखित "कालिकाचार्य" की एक और प्रति भी सचित्र है । इसमें केवल १५ ही पत्र है । इसी प्रकार "कल्पसूत्र" की रजत स्याही से लिखी हुई प्रति पूर्ण सचित्र है । स्वणिम स्याही से अंकित 'कल्पसूत्र' की एक अन्य प्रति १४६७ ई० की भी सम्पूर्ण चित्रित है। बीकानेर के संग्रह में भी १६वीं शताब्दी तक के कई सचित्र ग्रन्थ एवं कल्पसूत्र की प्रतियाँ है। राजस्थान के अन्य कई भण्डारों में कागज पर निर्मित असंख्य हस्तलिखित चित्रित ग्रंथ हैं । आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर में १४०४ ई० में प्रतिलिपिबद्ध किया, पुष्पदन्त रचित "आदिपुराण" है । इसमें १४वें पृष्ठ पर ऋषभदेव की माता मरुदेवी का १४ स्वप्न देखते हुये चित्रण किया है । इसके रंग अभी भी सजीव प्रतीत होते हैं। पुष्पदन्त के 'आदि पुराण" की एक अन्य प्रतिलिपि १४४० ई० को जयपुर के तेरापंथी मन्दिर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध है, जिसमें चित्र संयोजन का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि कई पृष्ठों पर चित्रण का क्षेत्र, पृष्ठ की सम्पूर्ण लम्बाई-चौड़ाई में कर दिया गया है और चित्रण के लिये लम्बवत् पट्टी रखने की पशिया की परम्परा का पालन नहीं किया गया है । इसमें ३४४ पृष्ठ हैं, जिनमें ५१५ चित्र हैं । पृष्ठभूमि के रंग रक्तिम लाल तथा श्वेत, काला, पीला और हरे हैं। मोतीचन्द्र के अनुसार मानव आकृतियों का संयोजन पश्चिम भारतीय कला के अनुरूप किया गया है। मुद्राओं और भंगिमाओं में गति दिखाई देती है । चित्रांकन कोणीय हैं तथा तीक्ष्ण नासिका, वक्राकार भौंहें, बाहर निकला हुआ सोना, पतली कमर व आंख का फैलाव कान तक दिखाई देता है। स्त्री एवं पुरुषों की वेशभूषा साधारण है। स्त्रियों को चित्रित साड़ी, चादर व चोली में तथा विभिन्न प्रकार के आभूषण भी दर्शाएँ गये हैं। पुरुष परिधानों में पगड़ी, दुपट्टा व धोती प्रदर्शित है। कुछ पुरुष सँकरी मोहरी के पाजामे व लम्बा कोट पहने हुये भी चित्रित हैं । सेनाओं के युद्धाभियान, पैदल, घुड़सवार, हाथी, रथ, तलवार, धनुष, तीर आदि हथियार भी चित्रित हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण निपुणतापूर्वक किया गया है । पहाड़ियाँ, नदियां, जलचर, पेड़-पौधे एवं हरियाली का भी सुन्दर चित्रण है । देवलोक, इन्द्रसभा और नृत्यरत अप्सराओं के चित्र सजधज से पूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त नरक के भयानक दृश्य, मन्दिर, देवालय, तीर्थकर, जैन मुनि और साध्वियों को भी चित्रित किया गया है। इस ग्रन्थ में प्रदर्शित चित्र भारतीय इतिहास, समाज व सांस्कृतिक स्थितियों पर
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