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________________ जैन कला : २७७ मोकल के राज्यकाल का, देलवाड़ा (देवकुल पाटक) में चित्रित " सुपासनाहचरियं" १४२६ ई० का है । यह ग्रन्थ ३७ चित्रों का एक अनुपम चित्र सम्पुट है, जो ज्ञान भण्डार पाटन के संग्रहालय में सुरक्षित है ।" यह ग्रन्थ देलवाड़ा में मुनि हीरानन्द द्वारा चित्रित किया गया था । पूर्ववर्ती चित्रित ग्रंथों से कलात्मक विशेषताओं में यह एक कदम आगे है । इसमें पृष्ठ भूमि का अंकन हींगलू के लाल रंग से किया गया है, स्त्रियों का लहँगा नीला, कंचुकि हरी, ओढ़नी हल्के गुलाबी रंग से, जैन साधुओं के परिधान श्वेत और पात्र श्याम रंग में चित्रित हैं । देलवाड़ा में भी महाराणा मोकल के समय का चौथा सचित्र ग्रन्थ "ज्ञानार्णव " १४२७ ई० का है । यह एक दिगम्बर जैन ग्रन्थ है, जो नेमिनाथ मन्दिर में लिखा गया । यह लालभाई दलपतभाई ज्ञान भंडार अहमदाबाद में सुरक्षित है । पाँचवाँ ग्रन्थ " रसिकाष्ठक" १४३५ ई० का है जो अगरचन्द नाहटा संग्रह, बीकानेर में है । इस काल में " निशीथचूर्णि", "अंगसूत्र", "कथारत्नसागर", " संग्रहणी सूत्र”, “उत्तराध्ययन सूत्र" "कालका कथा", " कल्पसूत्र " व "नेमिनाथ चरित्र" आदि की सचित्र पोथियाँ एवं उनकी प्रतिलिपियाँ भी रची गई । गुजरात व राजस्थान इनकी रचना के मुख्य केन्द्र थे । राजस्थान में उदयपुर, बीकानेर तथा जोधपुर इन कलाकारों के प्रमुख स्थान थे । गुरुओं या गुरासियों की जाति कहा जाता था तथा बहुत अल्प पारिश्रमिक लेकर जैन पोथियों में चित्र बनाना इनका व्यवसाय था । २ चित्रित ताड़पत्र अन्य स्थानों पर भी देखने को मिलते हैं । " कल्पसूत्र " का एक पत्रीय चित्र लोहावर के हरिसागर सूरि ज्ञान भण्डार में व बीकानेर के स्व० मोतीचन्द्र खजांची के संग्रहों में भी है । जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार में सचित्र ग्रन्थों के अतिरिक्त कुछ चित्रित ताड़पत्र भी हैं । एक ताड़पत्र पर महावीर के पंच कल्याणक चित्रित हैं । एक अन्य दो भागों में विभक्त पत्र पर २४ तीर्थङ्कर चित्रित हैं । एक पत्र पर जल क्रीड़ा का दृश्य है, जो जलचरों के अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इसी पत्र के कुछ हिस्से में चतुर्दश स्वप्न चित्रित हैं । ताड़पत्रीय चित्रों में सबसे महत्त्वपूर्ण कमल बेल का चित्रण है जो १२०० ई० के आसपास का प्रतीत होता है ।" फलोधी के "फूल चन्द संग्रह" में भी प्रति है । " " कल्पसूत्र " की एक सचित्र १. साराभाई मणिलाल नवाब, अहमदाबाद, जैन चित्र कल्पद्रुम १९५८, पृ० ३० ॥ २, आकृति १९६६, अंक २, जैन चित्रकला - रामगोपाल विजयवर्गीय । ३. कासलीवाल, जैभरा, पृ० २०६ । ४. वही, पृ० २०५ । ५. पवित्र कल्पसूत्र, निवेदन, पृ० ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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