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२७६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
मुस्लिम विध्वंस के कारण अनेकों मन्दिरों के जीर्णोद्धार व पुननिर्माण हुए तथा मंदिरों पर रंग-रोगन आदि के कारण लुप्त-प्राय हो गये। (ख) लघु चित्र शैलीः : (ख-१) सचित्र ताडपत्रीय ग्रन्थ :
१२वीं शताब्दी के उपरान्त भी ताड़पत्रीय ग्रन्थों की परम्परा सतत रही । जैसलमेर में उपलब्ध इस शताब्दी के सचित्र ताड़पत्रों के अतिरिक्त मेवाड़ क्षेत्र में भी १५वीं शताब्दी तक कई सचित्र ग्रन्थ रचे गए, जो विविध स्थानों पर संग्रहीत हैं । आहड़ में गहिल तेजसिंह के राज्यकाल में "श्रावक प्रतिक्रमण चूणि" १२६० में सचित्र ग्रन्थ लिखा गया। इस ग्रन्थ में चित्र के दाएं-बाएँ लिपि तथा मध्यभाग में चित्र है । इसकी पुष्पिका में आलेख चित्रों के साथ ही हैं । ग्रन्थ में कुल ६ चित्र है । जो बोस्टन संग्रहालय, अमेरिका में सुरक्षित हैं । इन चित्रों में नेमिनाथ और राजमति के नौ पूर्व भवों का वर्णन चित्रित है। प्रथम चित्र में नेमिनाथ के दो पूर्व भव-धन तथा धनवती तथा देव विमान सहित सौधर्म । दूसरे चित्र में अगले तीन पूर्व भवों-चित्रगति और विजयवेग, महेन्द्रा देवलोक, राजा अपराजित और रानी प्रीतिमती; तीसरे चित्र में स्वर्ग का शंखराज-यशोमति तथा अपराजित सहित चित्रित है। छठा, सातवाँ और इसी चित्र में आठवाँ भव भी चित्रित है । चौथे में समुद्र विजय की गर्भवती पत्नी व १४ में से ४ स्वप्न; पाँचवें में अवशिष्ट दस स्वप्न व नेमिनाथ का जन्म तथा छठे चित्र में जन्म महोत्सव से दीक्षा पर्यन्त तक की घटनाओं का चित्रण है। इन चित्रों को विशेषतायें तत्कालीन चित्रण पद्धति और परम्परा के अनुसार हैं। नारी चित्रों एवं अलंकरण का इनमें आकर्षक संयोजन है । महाराणा लाखा कालोन मेवाड़ का दूसरा सचित्र ग्रन्थ सोमेश्वर द्वारा गोडवाड़ में चित्रित किया गया, १४१८ ई० का “कल्पसूत्र" है, जो अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर में सुरक्षित है । ७९ पत्रों की इस प्रति में ७३ पत्रों तक "कल्पसूत्र" एवं "कालिकाचार्य कथा" ८८ श्लोकों की है। कथा में ३ चित्र हैं। "कल्पसूत्र" के १६ पृष्ठों पर चित्र हैं। इनमें से पत्रांक ९ और ३२ के बोर्डर पर लघु चित्र हैं । पत्रांक २६ में २ चित्र हैं। चित्रों की पृष्ठभूमि में लाल, हल्दिया बैंगनी एवं मूंगे के रंग का प्रयोग है तथा ग्रन्थ के अन्त में लिखी पुष्पिका से तत्कालीन कला-परंपरा की भी उचित पुष्टि होती है । यह प्रति जैसलमेर में तिलक रंग के शिष्य जयसुन्दर को पंचमी तप के उद्यापन में भेंट की गई थी। मेवाड़ का तीसरा सचित्र ग्रन्थ महाराणा
१. ओझा-उदयपुर राज्य, पृ० १६६-१७० । २. जैसलमेर नी चित्र समृद्धि, चित्र सं० ४-९ । ३. नाहटा-आकृति, वर्ष ११, अंक १, पृ० १११४ ।
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