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जैन कला : २७३
श्रावक के गले में स्वर्णहार है, पीछे-पीछे श्राविकाएँ भी इसी बड़े-बड़े कर्णफूल हैं । वस्त्र श्रावक के मोड़ी हुई मूँछ
फलक भी है, किन्तु सोमचन्द्र गणी के नहीं है । इससे उनका दीक्षा पर्याय में बड़ा होना प्रमाणित होता है। दोनों के पास रजोहरण व मध्य में स्थापनाचार्य है । दोनों एक घुटना ऊँचा व एक नीचा किये हुये, प्रवचन मुद्रा में आमने-सामने बैठे हैं । दोनों के वस्त्र श्वेत हैं | आचार्य के पीछे एक श्रावक बैठा है, जिसकी धोती जाँघिये की भाँति है । कंधे पर उत्तरीय के अतिरिक्त कोई वस्त्र नहीं है । वह एक घुटना ऊँचा किये हुये करबद्ध बैठा है । उसके मुद्रा में हैं, जिनके गले में हार, हाथों में चूड़ियाँ व कानों में रंगीन व छींट की तरह का है, एवं बालों में जूड़ा बँधा है। और ठोड़ी के भाग को छोड़कर, अल्प दाढ़ी है । सोमचन्द्र गणी के पृष्ठ भाग में दो व्यक्ति हैं, जिनकी वेषभूषा उपर्युक्त श्रावकों जैसी है । चित्र शैली में तत्कालीन प्रथानुसार नेत्र की तोखी रेखाएँ दोनों ओर इसलिये दिखाई हैं कि एकाक्षीपन का दोष न आये । चित्र के मध्य खण्ड में फूल बनाया है, जिसके बीच में छिद्र है, जो ग्रन्थ की डोरी पिरोने के लिये है । चित्र के दूसरे खण्ड में साध्वियों का उपाश्रय है। पट्ट पर प्रवर्तिनी विमलमति बैठी हुई हैं, जिनके पीछे पीठ फलक है । सामने दो साध्वियाँ बैठी हैं, जिनके नाम " नयश्री" और "नयमतिम" लिखा हुआ है। तीनों के बीच में स्थापनाचार्य जी रखे हुये हैं । साध्वीजी के पीछे एक श्राविका आसन पर बैठी हुई है । श्राविका का नाम " नन्दीसीर" लिखा हुआ है ! चित्रफलक का किनारा टूट जाने से जोड़ा हुआ है । इसमें आये साधु-साध्वियों के नाम " गणधर सार्द्धशतक बृहद वृत्ति" में नहीं मिलते, अतः इनके नाम प्राप्त होना ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
जैसलमेर के जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार में, जो कुमारपाल व जिनदत्त सूरि की काष्ठ पट्टिका थी, वह अभी थारूशाह के भण्डार में रखी हुई है। इस फलक पर " नरपति कुमारपाल भक्ति रस्तु" लिखा हुआ है । फलक के मध्य में नवफणा पार्श्वनाथ जिनालय है, जिसकी सपरिकर प्रतिमा के उभय पक्ष में गजारूढ़ इन्द्र और दोनों ओर चामरधारी अवस्थित हैं । दाहिनी ओर दो शंखधारी पुरुष खड़े हैं । बाँयें कक्ष में पुष्प, चंगेरी लिये हुए भक्त खड़े हैं, जिसके पीछे दो व्यक्ति नृत्य करते हुए भी चित्रित हैं एवं दो व्यक्ति वाद्य यन्त्र लिये खड़े हैं । जिनालय के दाहिनी ओर जिनदत्त सूरि की व्याख्यान सभा है । आचार्य के पीछे दो भक्त श्रावक एवं एक शिष्य नरपति कुमारपाल बैठा हुआ है । राजा के साथ रानी व दो परिचायक हैं । जिनदत्त सूरि के चित्र पर " श्री युग प्रधानागम श्री मज्जिन दत्त सूरयः " लिखा है । जिनालय के बाँयी तरफ गुण समुद्राचार्य हैं, जिनके सामने स्थापनाचार्यजी व चतुविध संघ हैं । चित्र स्थित साधु का नाम पं० ब्रह्म चन्द्र पृष्ठ भाग में दो राजपुरुष हैं, जिनका नाम "सहणय" व "अनंग" लिखा है । साध्वीजी के सामने भी स्थापनाचार्य और उनके समक्ष दो श्राविकाएँ करबद्ध खड़ी हैं । "गणधर
१. जिनचन्द्र स्मृग, पृ० ५५ ।
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