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________________ २७० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म इससे भी पूर्व तिब्बती इतिहासज्ञ तारानाथ ने "पश्चिम भारतीय शैली" का उल्लेख किया है और डॉ० मोतीचन्द्र ने इस नाम का औचित्य स्वीकार किया है, क्योंकि उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इस शैली का उद्गम और विकास, पश्चिमी भारत में विशेषतः गुजरात व राजपूताना प्रदेश में हुआ सिद्ध होता है । तारानाथ के अनुसार पश्चिमी कला शैली मारू (मारवाड़) के शृंगधर नामक कुशल चित्रकार ने ७वीं शताब्दी में प्रारम्भ की थी जो उत्तर में नेपाल व कश्मीर तक पहुँच गई ।' उपलब्ध प्रमाणों से - स्पष्ट है कि इसकी पुष्टि जैन परम्पराओं के भीतर ही हुई, इसलिये इसका " जैन शैली" नाम अनुचित नहीं है । साराभाई नबाब ने इस शैली के लिये " पश्चिमी जैन कला" नाम सुझाया है । 3 २ ४ पर्सी ब्राउन ने अजन्ता व राजस्थानी चित्रकला के बीच का काल, वस्तुत: जैन " चित्रकला का काल है, भारतीय कला का अन्धकार युग बताया है । आचर के भी यही विचार हैं ।" भारतीय कला समीक्षक राय कृष्णदास ने जैन शैली के प्रति अत्यधिक आक्रोश व्यक्त किया है। वस्तुतः अजन्ता चित्रशैली के मानदण्डों से हर चित्रशैली को नहीं तौला जा सकता । सौन्दर्य को आदमी के चेहरे-मोहरों में न देखकर कला तत्त्वों की दृष्टि से संरचना को पहिचानने पर जैन चित्रकला नया ही अर्थबोध उपस्थित करती है । ११वीं से १६वीं शताब्दी तक जैन चित्रकला का समय माना जाता है । उसके पश्चात् राजस्थान में विविध प्रादेशिक चित्र शैलियाँ अस्तित्व में आई । बासिल ग्रे के अनुसार यह शैली १५वीं - १६वीं शताब्दी में अपने चरमोत्कर्ष पर थी । अकबर के काल में यह इतनी शक्तिशाली थी कि अकबर ने अपने पुस्तकालय विभाग के लिये गुजराती कलाकारों को चुना था । " मारिये बुसारिल के अनुसार जैन चित्रकला कुछ अर्थों में एकदम नवीन एवं पूर्ण क्रान्तिकारी शैली थी, जिसने चित्रकला के विकास में एक नया ही प्रकरण जोड़ा है | राजस्थान व गुजरात के बाहर भी इस शैली का प्रसार रहा, जहाँ जैन व अजैन दोनों प्रकार की सचित्र पुस्तकें लिखी जाती रहीं । १. इए, ४, पृ० १२०२ । २. जैन हीरालाल, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० ३६८ । ३. वही ४. हेरिटेज ऑफ इण्डियन पेंटिग्ज ५. इण्डियन पेंटिग्ज ६. भारत की चित्रकला, पृ० २४-३६ । ७. जैसरा, पृ० २०४ । ८. राजपूत पेंटिग्स, पृ० ३ | ९. इण्डियन मिनिएचर, पृ० ४३ । जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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