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जैन तीर्थ : १६७
१६७८ ई० में पाली से खरतर गच्छीय चन्द्र सूरि को बुलवाकर प्रतिष्ठा की गई। प्रतिमा लेख से ज्ञात होता है कि महाराजा गजसिंह के राज्य में उकेशवंशीय लाखन सन्ता ने, भण्डारी गोत्र के अमरा पुत्र भाना ने भार्या व पुत्र सहित एक मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई थी।' मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय महाराजा स्वयं उपस्थित थे। राजा ने दान व सनद आदि भी प्रदान किये थे । राज्य से केशर, धूप, चन्दन आदि के लिये ३० रुपये मासिक बिलाड़ा तहसील से मिलने की व्यवस्था थी।२ १८३५ ई० के पश्चात् से ही यहाँ की जनसंख्या में काफी कमी आ गई। १९१८ ई० में जीर्णोद्धार के पश्चात् यहाँ पुनः प्रतिष्ठा हुई थी। (४) दयाल शाह का किला :
__ उदयपुर से ४३ मील दूर, बस मार्ग पर, राजनगर कस्बे में एक ऊंची पहाड़ी पर यह किला और तीर्थ स्थित है, जो मेवाड़ की पंचतीर्थी में सम्मिलित किया जाता है। यहाँ मंत्री दयालशाह ने नौमंजिला चतुर्मुख जिन प्रासाद निर्मित करवाया था और उसमें ऋषभदेव की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई थी। मन्दिर की कारीगरी और सज्जा उत्कृष्ट और मनोरम है। यहां पर "राज-प्रशस्ति" नामक २५ सर्ग का पाषाण शिला पर लेख है, जो भारत का सबसे बड़ा शिलालेख है । राणा राजसिंह ने जितना धन राजसमंद बनवाने में व्यय किया, उतना ही धन उनके मन्त्री दयालशाह ने इस मन्दिर के निर्माण में व्यय किया था। (५) जैसलमेर पंचतीर्थी के अन्य मन्दिर एवं तीर्थ : (क) अमरसर के जैन मन्दिर : __ जैसलमेर से ३ मील दूर लोद्रवा की तरफ सघन आम्र वृक्षों से आच्छादित.. महारावल अमरसिंह द्वारा निर्मित अमरसर बांध, उपवन है। इसमें ३ जैन मन्दिर हैं तीनों के मूल नायक आदिनाथ हैं । प्रथम मन्दिर सड़क के किनारे मुनि इंगर सी की बेरी के पास है, जो पंचायत की तरफ से बनवाया हआ है। मन्दिर की प्रतिष्ठा १८४६ ई० में राणा रणजीत सिंह के काल में हुई । शेष दोनों मन्दिरों का निर्माण जैसलमेर के सुख्यात बाफना ( पटवा ) जाति के सेठों ने करवाया। छोटे मन्दिर का निर्माण सवाई राम बाफना ने १८४० ई० में और बड़े मन्दिर का निर्माण हिम्मत राम बाफना ने १८७१ ई० में करवाया। बड़े मन्दिर की प्रतिमा बोकमपुर से लाई गई है, जो लगभग १५०० वर्ष प्राचीन है। दोनों मन्दिरों की प्रतिष्ठा खरतर गच्छाचार्य
१. कापरडा तीर्थ, पृ० ३८ । २. वही, पृ० ३८। ३. जैसरा, पृ० १९८ ।
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