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२६२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म व्यवस्था के निमित्त महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं। इसके अनुसार इस मन्दिर के "धर्म चिन्तामणि" की पूजा के लिये १४ टका अनुदान करने का उल्लेख है । (८) भीलड़िया तीर्थ : ___ श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह में इस तीर्थ का उल्लेख है। यहाँ के जैन मन्दिर से १२७७ ई० से १८३५ ई० तक के ११ अभिलेख प्राप्त होते हैं, जिनके आधार पर इसे मध्यकालीन तीर्थ माना जा सकता है । १२८७ ई० का लेख अम्बिका की प्रतिमा पर तथा इसी वर्ष का एक अन्य लेख अधिष्ठायक मूर्ति पर है। गृह मन्दिर में मूलनायक नेमिनाथ की प्रतिमा के अतिरिक्त, १८३५ ई० की आदिनाथ और चन्द्रप्रभु की प्रतिमाएं भी हैं। १३१० ई० का लेख आदिनाथ की धातु पंचतीर्थी पर, १४७८ ई० का लेख शान्तिनाथ बिम्ब पर, १२७७ ई० का गौतम स्वामी की प्रतिमा पर, १४५० ई० का सुमतिनाथ पंचतीर्थी पर तथा १७८० ई० का लेख पादुकाओं पर अंकित है। (स) उत्तर मध्यकाल: (१) श्री महावीर जी : __श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महावीर जी, सवाई माधोपुर जिले में पश्चिमी रेलवे की दिल्ली-बम्बई मुख्य लाइन पर गंगापुर सिटी के पास, इसी नाम का रेलवे स्टेशन है, जहां से ६ कि० मी० दूर, इसी नाम की बस्ती में महावीर मन्दिर अवस्थित है । मुख्य मन्दिर के अतिरिक्त, यहाँ अन्य कई जैन मन्दिर व धर्मशालाएँ हैं । अतिशय युक्त मूर्ति का इतिहास किंवदंतिपूर्ण है। चाँदनपुर (निकटस्थ ग्राम ) के ग्वाले की गाय निकटवर्ती एक टीले पर रुक कर स्तनों से स्वतः दूध गिरा देती थी। ग्वाले ने उत्सुकता वश टीले को खोदा तो उसमें से मूर्ति निकली, जिसके दर्शनार्थ आसपास के बहुत से लोग आये । बसवा गाँव ( जयपुर ) के दिगम्बर खण्डेलवाल, बिलाला गोत्रीय अमरचन्द ने, मूर्ति को अतिशयता से सम्मोहित होकर मन्दिर का निर्माण करवाया । धीरे-धीरे लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होने लगी और चाँदनपुर वाले महावीर जी का यश-सौरभ और फैलने लगा एवं लोक श्रद्धा ने इसे अतिशय सम्पन्न तीर्थ की मान्यता दे दी। महावीर जी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति बयाना व ताहनगढ़ के मध्य होने के कारण इस क्षेत्र से मुस्लिम सेनाओं का आवागमन बना रहता था। संभवतः किसी काल खण्ड
१. नाजैलेस, २, क्र० २००६ । २. श्री जैप्रलेस, पृ० १९ । ३. वही, क्र० ३३४-३४४ । ४. वही, क्र० ३०६-३०९ ।
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