________________
जैन तीर्थ : २६१ पूर्ण तीर्थ के रूप में जावर प्रतिष्ठित हो गया था।' १४५१ ई० में देलवाड़ा के प्रतिष्ठा महोत्सव से एक प्रतिमा जावर भी भेजी गई थी। खरतर गच्छ के जिनचन्द्र सूरि के उपदेशों से श्रेष्ठी कान्हा ने यहां पर एक “वीर विहार" का निर्माण करवाया था। १४९७ ई० के लेख के अनुसार यह तीर्थ महाराणा कुम्भा की पुत्री रमा बाई की जागीर में था। यहाँ पर महाराणा रायमल, सांगा व बनवीर के काल के १४९७ ई०, १५२५ ई० व १५४० ई० के अभिलेख उपलब्ध हैं। शान्तिनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार १६३७ ई० में पंचोली वीरसेन, चौधरी मोहन तथा कुछ अन्य व्यक्तियों ने मिलकर करवाया था। (७) देवकुल पाटक तीर्थ ( देलवाड़ा-मेवाड़ ):
मेवाड़ की पंचतीर्थी का यह तीर्थ उदयपुर से १८ मील दूर है । मध्यकाल में यह महत्त्वपूर्ण जैन तीर्थ था। वर्तमान में यहाँ महत्त्वपूर्ण, चार जैन मन्दिर हैं । पहला मन्दिर कस्बे के बाहर विशिष्ट संरचनात्मक विशेषताएँ लिये हुये है, शेष मन्दिर सामान्य हैं। इस कस्बे में १४०३ ई० से १४५३ ई० तक के कई अभिलेख प्राप्त होते हैं। संभवतः यहां महाराणा खेता से राणा सांगा तक के शासन कालों के मध्य कई जैन श्रेष्ठी रहते थे। मेघ, विशाल, केल्हा, निंबा, भीम, कटुक आदि श्रेष्ठियों के जैन संघ ने यहाँ एक ऋषभदेव मन्दिर बनवाया था।५ केल्हा के पुत्र सूरि ने १४३२ ई० में कुंथुनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई थी, जो वर्तमान में उदयपुर के शान्तिनाथ मन्दिर में सुरक्षित है । यहाँ के रामदेव नवलखा व उनका पुत्र सहनपाल मेवाड़ के मन्त्री रहे थे। १४१२ ई० में जिनराज सूरि और मेरुनन्दन उपाध्याय की प्रतिमाएँ रामदेव की पत्नी मेलादेवी के द्वारा यहाँ स्थापित करवाई गई थीं। १४२९ ई० में उसने हो जिनवर्धन सरि को प्रतिमा की प्रतिष्ठा भी करवाई। सहनपाल ने १४३४ ई० और १४३७ ई० में कई प्रतिमाओं की स्थापना करवाई थी।' १४३४ ई० में उसने एक शत्रुञ्जय पट्ट भी स्थापित करवाया था।९ १४३४ ई० के अभिलेख में मन्दिरों की
१. जैरा, पृ० १३१ ।। २. प्राजलेस, क्र० ३७२। ३. इए, ए० रि० १९५६-५७, पृ० ५२४ । ४. एरिराम्युअ, १९२५, क्र० १२। ५. विजय धर्मसूरि, देवकुलपाटक, भावनगर १९३५ । ६. जैलेस, भावनगर, १, क्र० १४८ । ७. सोमाणी-महाराणा कुम्भा, पृ० ३३३ । ८. विजय धर्म-देवकुलपाटक, क्र० ९ । ९. वही, क्र० १३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org