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जैन तीर्थं : २५३
मन्दिर के प्रत्येक द्वार के सामने सभा मण्डप है तथा उसके आगे पूजा गृह है । प्रत्येक सभा मण्डप के सामने छोटा मन्दिर है, जो " खूंट का मन्दिर" कहलाता है । चारों खूँट के मन्दिरों के सामने, स्तम्भों पर आधारित, ४ मण्डपों के समूह हैं । इन मन्दिरों के अभिलेखों से स्पष्ट है कि इनका निर्माण कार्य - ईशान कोण १४४६ ई०, वायव्य कोण १४५० ई०, नैऋत्य कोण १४५४ ई० एवं अग्नि कोण १४५९ ई० में सम्पन्न हुआ था ।' सबसे बड़ा मण्डप मुख्य द्वार के सामने है, जिसमें १६ स्तम्भों पर दोहरे शिखर हैं । इस मण्डप की छत पर नृत्य करती हुई स्त्री मूर्तियाँ सुन्दरता से उत्कीर्ण हैं । कोई श्रृंगाररत, कोई घुंघरू बाँधते हुये, कुछ वीणा और बाँसुरी बजाती हुई, तो कोई नृत्य मुद्रा में हैं । खूंट के मन्दिर के बाहर, उत्तरंग पर, नाग कन्याओं और जाली युक्त कमल पुष्प के दृश्य हैं । मन्दिर के चारों ओर ८० छोटी व ४ बड़ी देवकुलिकाएँ, महावीर व संभव-शरण की उत्तरी द्वार की तरफ तथा दक्षिणी द्वार की तरफ दो बड़ी देवकुलिकाएँ आदीश्वर तथा नन्दीश्वर की संज्ञा से अभिहित की जाती हैं। छोटी देव -- कुलिकाओं का प्रांगण, स्तम्भ उठाकर छतदार बनाया हुआ है, जबकि बड़ी देवकुलिकाएँ गुम्बद वाली हैं । पश्चिमी कोण की देवकुलिका में महावीर और अजितनाथ की मूर्तियाँ हैं । उत्तरी पूर्वी कोण में, सबसे उल्लेखनीय मूर्ति धरणाशाह की है, जिसके हाथ में माला और सिर पर पाग है । एक देवकुलिका में पार्श्वनाथ की ध्यानमग्नावस्था में " खड़ी प्रतिमा " नागदेह से लिपटी हुई है तथा नाग के १०८ या १००८ फन उस पर छाया किये हुये हैं । एक अन्य देवकुलिका में शान्तिनाथ और नेमिनाथ की प्रतिमाएँ हैं ।
मूर्तियाँ भी बड़ी आकर्षक
बाहर के रंगमण्डप में बने तोरण अत्यन्त आकर्षक हैं । ये तोरण एक ही पत्थर के बने हुये हैं तथा सूक्ष्म तक्षण कला के उत्कृष्ट नमूने हैं । इसी रंगमण्डप के गुम्बद के घेरे के चारों ओर, नृत्यरत १६ पुतलिकाएं, विविध भाव भंगिमाओं में अंकित हैं । रंग मंड से जुड़े हुये ४ मण्डप और हैं, जिनकी ऊँचाई लगभग ४० फीट है । इसके स्तम्भ एवं गुम्बद बड़े ही नयनाभिराम हैं । मन्दिर के चारों भागों में प्रकाश के लिये ४ बड़े खुले चौक हैं । मूल नायक की देव - कुलिका के जंघा भाग में बनी हैं । इनमें स्त्री मूर्तियाँ नृत्य मुद्रा में तथा नर्तकियाँ तलवार व जो उस युग की भावना के अनुकूल है । स्त्री प्रतिमाओं के साथ हैं । मन्दिर के उत्तरी द्वार की ओर एक सहस्रकूट स्तम्भ है, भी कहते हैं । यह महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित बताया जाता है, किन्तु इस पर अंकित लेखों से ज्ञात होता है कि इसे भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने बनवाया था । इसके मध्य भाग में कई प्रतिमाएँ बनी हुई हैं ।
ढाल लिये प्रदर्शित हैं, देव प्रतिमाएँ भी निर्मित जिसे "राणक स्तम्भ”
१. तारामंगल, कुम्भा, पृ० १७२ ।
२.
वही ।
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