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जैन तीर्थ : २५१. पर अंकित लेख से ज्ञात होता है कि तपागच्छाचार्य विजयसेन सूरि के द्वारा १६०९ ई० में प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हुआ था। (२) रणकपुर जैन तीर्थ :
पश्चिम रेलवे की छोटी लाइन पर, आबू रोड व अजमेर के बीच, फालना से लगभग २२ मील को दुरी पर स्थित, रणकपुर जैन मन्दिर उत्तरी भारत का विशिष्ट श्वेताम्बर जैन तीर्थ हो नहीं, अपितु कला तीर्थ भी है। यह पाली जिले की देसूरी तहसील में, सादड़ी से ६ मील दूर हरियाली पहाड़ो घाटो की गोद में बसा हुआ है । इसका प्राचीन नाम "राणपुर" भी था, जो संभवतः महाराणा कुम्भा के प्रति आभार व्यक्त करने के लिये रखा गया होगा।
इस मन्दिर को "राणपुर का चौमुखा मन्दिर" भी कहते हैं। इसके अन्य नाम भी मिलते हैं। १४४२ ई० में मेह नामक कवि ने इसे "त्रैलोक दीपक' संज्ञा से विभूषित किया।' ज्ञानविमल सूरि ने इसे "नलिनी गुल्म विमान" की सी रचना वाला बताया है । मन्दिर के निर्माता धरणाक सेठ के नाम पर इसे "धरणाक विहार" भी कहते हैं । लेकिन सही नाम सम्भवतः मुख्य मन्दिर के प्रवेश मार्ग के शिलालेख में लिखित है, जो "त्रैलोक्य दीपक" तथा "श्री चतुर्मुख युगादीश्वर विहार" है । यह मन्दिर गोड़वाड़ पट्टी के या मारवाड़ की बड़ी जैन पंचतीर्थी के मन्दिरों में मुख्य है। इस पंचतीर्थी में राणकपुर, मुछाला महावीर, नाडलाई, नाडौल एवं वरकाणा सम्मिलित हैं, जो सादड़ी के आसपास ही हैं । १७वीं शताब्दी के कवि ऋषभदान ने “हीरविजय सूरि रास'' में इस तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुये लिखा है कि जिसने रणकपुर तीर्थ की यात्रा नहीं को, उसका जन्म लेना भी निरर्थक है। समयसुन्दर ने भी अपने “यात्रा स्तवन" में इस तीर्थ की प्रशंसा की है। त्रैलोक्य दीपक या चौमुखा मन्दिर के चारों ओर द्वार हैं । इस मन्दिर में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इसके अलावा दो और मन्दिर, नेमिनाथ एवं पार्श्वनाथ के हैं । एक वैष्णव मन्दिर सूर्य नारायण का भी है । सर्वाधिक सुन्दर, कलात्मक व रचना कौशल में बेजोड़, त्रैलोक्य दीपक है, जिसमें राजस्थान की जैन कला और धार्मिक परम्परा का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है। __मन्दिर के शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण प्राग्वाट जाति के (पोरवाल बंशी) महाराणा कुम्भ के प्रीति पात्र, धरणाक सेठ ने, अपने भाई रत्ना एवं पूरे परिवार के सहयोग से करवाया। ये सिरोही क्षेत्र के नाँदिया गाँव के मूल निवासी थे। मन्दिर १. राजस्थान हिस्ट्री काँग्रेस, सोवेनियर १९७४, पृ० १५ । २. १४३९ ई० का लेख, पंक्ति ४२-४३ । ३. राभा, कुम्भा विशेषांक, पृ० १४४ । ४. १४३९ ई० का लेख, पंक्ति ३८, ४१ ।
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