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२५० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म है । प्रस्तर एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मन्दिर भी दर्शनीय है। इस मन्दिर का विशेष आकर्षण, दूसरे तले में बांयी तरफ की कोठी में सुरक्षित कई सर्वधातु की मूर्तियाँ, चौबीसी और पंचतीथियों का अत्यधिक महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इन पर उत्कीर्ण अभिलेख इतिहास के शोधन में बहुत सहायक है । (च) ऋषभदेव मन्दिर :
त्रिकूट दुर्ग स्थित यह सातवाँ मन्दिर प्रशस्ति विहीन है। मन्दिर की मूर्तियों पर अंकित लेखों से ज्ञात होता है कि इस देवस्थान का निर्माण गणधर चोपड़ा गोत्रीय सच्चा के पुत्र धन्ना ने महारावल देवीदास के राजत्व काल में १४७९ ई० में करवाया और खरतरगच्छ के आचार्यों ने १४७९ ई० में ही इस मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई । जिनसुख सूरि की "चैत्य परिपाटी" में इस मन्दिर में मूर्तियों की संख्या ६३१ व "वृद्धि रत्नमाला" में यह संख्या ६०७ होने का उल्लेख है। निर्माण योजना की दृष्टि से यह भी पूर्वोक्त मन्दिरों की तरह है । मन्दिर की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ के मुख्य सभा मण्डप के स्तम्भों पर हिन्दू देवी-देवताओं का भी रूपांकन है। कहीं राधा व कृष्ण, कहीं अकेले कृष्ण वंशीवादन करते हुए प्रदर्शित है। गणेश, शिव, पार्वती, सरस्वती, इन्द्र व व विष्णु की प्रतिमाएं भी उत्कीर्ण हैं । (छ) महावीर स्वामी मन्दिर :
दुर्ग स्थित अन्तिम व आठवाँ मन्दिर पूर्ववर्णित मन्दिरों से कुछ दूरी पर चौगान पाड़े में निर्मित है। यहाँ के शिलालेख से ज्ञात होता है कि इस देवस्थान का निर्माण १४१६ ई० में हुआ। जिन सुख सूरि के अनुसार इस मन्दिर की प्रतिष्ठा, ओसवाल वंश के बरडिया गोत्रीय दीपा ने करवाई।' इस मन्दिर की मूर्तियों की संख्या जिनसुख सूरि के अनुसार २३२ व "वृद्धि रत्नमाला" के अनुसार २९५ है। प्रस्तर कला की दृष्टि से यह मन्दिर पूर्व वर्णित मन्दिरों जैसा आकर्षक नहीं है । (ज) सुपार्श्वनाथ मन्दिर : ____ नगर में स्थित जैन धर्मशाला से कुछ दूरी पर, कोठारी पाड़ा में यह मन्दिर निर्मित है । इस मन्दिर की प्रतिष्ठा तपागच्छ के आचार्य हीरविजय सूरि की शाखा के गुलाल विजय के शिष्य द्वय, दीपविजय और नगरविजय ने १८१२ ई० में करवाई । मन्दिर का प्रशस्ति लेखन नगविजय ने ही किया, जो अत्यंत पांडित्यपूर्ण है। (झ) विमलनाथ मन्दिर :
यह मन्दिर जैन धर्मशाला से थोड़ी दूर, दासोत पाड़ा में आचार्य गच्छ के उपासरे में बना हुआ है। मन्दिर प्रतिष्ठा की कोई प्रशस्ति उपलब्ध नहीं है। मूलनायक की मूर्ति
१. नाजैलेस, ३, क्र० २४०० ।
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