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जैन तीर्थ : २४९
कुल ६४० लिखी है, किन्तु " वृद्धि रत्नमाला" में यह संख्या ८०४ मिलती है । इसी प्रकार अष्टापद मन्दिर की मूर्ति संख्या भी क्रमशः ४२५ और ४४४ होने का उल्लेख मिलता है । इस मन्दिर के दाँयी तरफ पाषाण के दो सुन्दर एवं कलापूर्ण हाथो बने हुए हैं, जिन पर एक पुरुष व दूसरी स्त्री की धातु मूर्ति आसीन है । सम्भवतः ये मूर्तियाँ मन्दिर प्रतिष्ठा कराने वाले स्वर्गीय खेता व उसको भार्या सरस्वती की है । इसी मन्दिर में दशावतारों सहित श्री लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति भी स्थापित है । प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि ये मूर्तियाँ महारावल देवीदास के ज्येष्ठ पुत्र जैतसिंह की आज्ञा से स्थापित की गई थीं । इन मन्दिरों की स्थापत्य शैली भी पूर्वोक्त प्रकार की है । इनके शिखर भव्य व आकर्षक है | शान्तिनाथ मन्दिर के शिखर के गुम्बद की छत में वाद्य यन्त्रों के साथ नृत्य करती हुई बारह अप्सराओं का नृत्यांकन कलात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है। नीचे के भाग में गंधर्वों की प्रतिमाएँ प्रदर्शित हैं । मन्दिर के बाहरी क्षेत्र में खुदी हुई भावना - मयी मूर्तियाँ अत्यंत आकर्षक हैं । अष्टापद मन्दिर के सभा मंडप में चारों स्तम्भों के मध्य तोरण हैं। गुढ़ मण्डप में एक सफेद आरस की और दूसरी श्याम वर्ण की प्रस्तर मूर्तियाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिष्ठित हैं । इनके दोनों पार्श्वो में ग्यारह - ग्यारह मूर्तियाँ होने से इन्हें चौबीसी की संज्ञा दी गई है संपूर्ण संरचना अतीव सुन्दर है । अष्टापद मन्दिर के अन्तः भाग में हाथी, घोड़े, सिंह व कहीं-कहीं बन्दर की आकृति भी उत्कीर्ण है । मन्दिर के पानी को बाहर निकालने के लिये नाली, मगरमच्छ के मुँह के सदृश दिखाई देती है । ऊपरी दीवारों पर शिव-पार्वती की आकृति तथा तुरही, ढोलक और तम्बूरे बजाती हुई युवतियाँ तथा नृत्य की विभिन्न मुद्राएँ उत्कीर्ण हैं । ये सभी तक्षण कला के अनुपम नमूने हैं । स्त्री आकृतियों का अभिराम चित्रण इतना प्रभावोत्पादक है कि कला की दृष्टि से इनको खजुराहो, कोणार्क व देलवाड़ा में प्राप्त प्रतिमाओं के समकक्ष रखा जा सकता है।
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(ङ) चन्द्रप्रभ स्वामी मन्दिर :
इस भव्य तिमंजिले मन्दिर का निर्माण किसने करवाया, यह तथ्य प्रशस्ति के अभाव में अस्पष्ट है । निजमूर्ति (मूलनायक की मूर्ति) के लेख से ज्ञात होता है कि भणशाली गोत्रीय बीदा ने १४५२ ई० में इस मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी । चैत्य परिपाटी स्तवनों में भी ऐसा ही उल्लेख मिलता है । इसके सभा मण्डप के ८ स्तम्भों में ८ सुन्दर कलापूर्ण तोरण निर्मित हैं । जिनालय के गुम्बद की बनावट चित्ताकर्षक है । दूसरी व तीसरी मंजिल पर चन्द्रप्रभु की चौमुखी मूर्ति है । नीचे के सभा मण्डप में चारों तरफ बारीक व सुन्दर जालियों का उत्कीर्णन है । इस मन्दिर में गणेश को विभिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित किया गया है। जिनसुख सूरि ने " चैत्य परिपाटी" में मन्दिर की - मूर्तियों की संख्या ८०९ लिखी है, किन्तु " वृद्धि रत्नमाला" में यह संख्या १६४५ वर्णित
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