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________________ २४८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म समान झूलता हुआ कमल का लोलक है, जिसके आस-पास १२ अप्सराओं को आकृतियाँ हैं । अप्सराओं से नीचे के हिस्से में गन्धर्व उत्कीर्ण है। अप्सराओं के मध्य भाग में पद्मासन मुद्रा में जिन मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं, जिनके नीचे हंस निर्मित हैं । दक्षिण दिशा में पीत प्रस्तर के चित्रांकित तोरण हैं । मन्दिर का शिखर सादगीपूर्ण है, किन्तु मंडोवर के गोलाखों में पद्मासन स्थित तीर्थंकरों को मूर्तियाँ, वस्तुतः दर्शनीय हैं । शेष मन्दिरयोजना पूर्वोक्त शैली की है । इस मन्दिर का सबसे बड़ा आकर्षण "जिनभद्र सुरि ज्ञान भण्डार" है, जिसे देखने न केवल जैन यात्री, अपितु विदेशी भी आते रहते हैं । (ब) शीतलनाथ मन्दिर : त्रिकूट दुर्ग में स्थित तीसरा मन्दिर तीर्थङ्कर शीतलनाथ का है। किस व्यक्ति विशेष ने इस मन्दिर का निर्माण कराया यह निश्चय नहीं है, क्योंकि इस मन्दिर में कोई प्रशस्ति नहीं है । जैसलमेर चैत्य परिपाटी, स्तवनों और पट्टिका के लेख से इतना ज्ञात होता है कि इस मन्दिर का निर्माण डागा गोत्रीय सेठों ने करवाया। सेवक लक्ष्मीचन्द रचित "जैसलमेर तवारीख' के पृष्ठ २०८ में दिये गये जैन मन्दिरों के हाल को देखने से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर का निर्माण डागा लूणसा मूणसा ने १४५२ ई० में करवाया। "वृद्धि रत्न माला" के पृष्ठ ४ के अनुसार मन्दिर की प्रतिष्ठा १४५१ ई० में हुई । जिनसुख सूरि रचित चैत्य परिपाटी में इस मन्दिर की कुल मूर्तियों को संख्या ३१४ तथा "वृद्धि रत्नमाला" में ६७ मूतियों के होने का उल्लेख है। स्थापत्य शैली, इसकी भी पूर्वोक्त मन्दिरों जैसी ही है। इस मन्दिर में नौखंडा पार्श्वनाथ तथा एक ही पत्थर पर २४ तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । यह पट्ट अत्यन्त मनोहर व आकर्षक है । (घ) शान्तिनाथ और अष्टापद मन्दिर : ये दोनों मन्दिर एक ही परिसर में निर्मित है। ऊपर के भाग में शान्तिनाथ का और नीचे अष्टापद जी का मन्दिर है । नीचे वाले मन्दिर में १७वें तीर्थंकर कुन्थुनाथ की मूर्ति नायक के रूप में प्रतिष्ठित है। इन दोनों मन्दिरों की एक ही प्रशस्ति है, जो राजस्थानी एवं स्थानीय भाषा का मिश्रित रूप है। इन दोनों मन्दिरों का निर्माण संखवलेचा और चोपड़ा गोत्रीय खेता और पाँचा ने करवाया। खरतर गच्छ के जिन समुद्र सूरि ने १४७९ ई० में इसकी प्रतिष्ठा कराई ।' संघवी खेता धनाढ्य और श्री सम्पन्न था। इसने सकुटुम्ब कई बार विविध तीर्थों को यात्राएं की और संभवनाथ मन्दिर की प्रसिद्ध तप पट्टिका की प्रतिष्ठा कराई। इस मन्दिर को प्रशस्ति का निर्माण देव तिलक उपाध्याय ने और उत्कीर्णन शिल्पी खता ने किया। जिनसुख सूरि ने “चैत्य परिपाटी स्तवन" में शान्तिनाथ मन्दिर की मूर्ति संख्या, प्रदक्षिणा में २४० और चौक में ४००, १. जैसलमेर का सूची पत्र, पृ० २०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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